यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल है ये सूर्य मंदिर, श्रीकृष्ण के पुत्र ने यहां की थी तपस्या

इस बार छठ पर्व 2 नवंबर, शनिवार को है। इस दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा करने की परंपरा है। उत्तर प्रदेश और बिहार में ये पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है।

उज्जैन. हिंदू धर्म में सूर्य को साक्षात ईश्वर माना गया है क्योंकि वे हमें रोज दिखाई देते हैं और उन्हीं की किरणों से धरती पर जीवन संभव हो सका है। भारत में सूर्य के अनेक मंदिर हैं। उन्हीं में से एक है कोणार्क का सूर्य मंदिर। ये मंदिर बहुत ही विशेष हैं, जानिए क्या है इसकी खास बातें...

ये हैं कोणार्क मंदिर से जुड़ी खास बातें…
- कोणार्क के ऐतिहासिक सूर्य मंदिर को यूनेस्को ने विश्व-धरोहर के रूप में शामिल किया है। यह मंदिर बेहद खूबसूरत होने के साथ-साथ वास्तु शास्त्र की नजर से भी बहुत खास है।
- लाल बलुआ पत्थर और काले ग्रेनाइट पत्थर से 1236– 1264 ई.पू. में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गए इस मंदिर की पूरी दुनिया में चर्चा होती है। - इस मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है। रथ में बारह जोड़े विशाल पहिए लगे हैं और इसे सात शक्तिशाली घोड़े तेजी से खींच रहे हैं।
- यह भारत का भव्य सूर्य मंदिर है। चूंकि सूर्य स्वयं साक्षात देव हैं, जिनके बिना इस सृष्टि का संचालन नहीं हो सकता, इसलिए इस मंदिर में स्थापित भगवान के हम साक्षात दर्शन करते हैं।
- इस मंदिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं- बाल्यावस्था यानी उदित सूर्य- जिसकी ऊंचाई 8 फीट है। युवावस्था, जिसे मध्याह्न सूर्य कहते हैं, इसकी ऊंचाई 9.5 फीट है। तीसरी अवस्था है- प्रौढ़ावस्था, जिसे अस्त सूर्य भी कहा जाता है, जिसकी ऊंचाई 3.5 फीट है।
- इस मंदिर की एक कहानी भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है। कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को कोढ़ रोग हो गया था। तब सांब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के संगम पर कोणार्क में, बारह वर्ष तपस्या की और सूर्यदेव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव के आशीर्वाद से सांब पुन: पहले जैसा हो गया।

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कहां है ये मंदिर...
यह मंदिर भारत के पूर्वी राज्य उड़ीसा के पुरी जिले में 21 मील उत्तर पूर्व की ओर चंद्रभागा नदी के किनारे कोणार्क में स्थित है।

कैसे पहुंचे?
कोणार्क उडीसा राज्य में स्थित है। भुवनेश्वर और पुरी जैसे प्रमुख शहरों से कोणार्क सडक द्वारा जुडा हुआ है। आइए जानते है कि कोणार्क कैसे पहुँच सकते है।

हवाई जहाज
अगर आफ हवाई जहाज के द्वारा जाते है, तो आप भुवनेश्वर हवाई अड्डे तक पहुंच सकते है, जहाँ से कोणार्क मात्र 64 किमी. दूर है।

रेल द्वारा
कोणार्क के आसपास कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। अगर आप रेल द्वारा जा रहे है, तो आपको पुरी रेलवे स्टेशन पर उतरना होगा और इस रेलवे स्टेशन से कोणार्क 31 किमी. दूर है।

सडक द्वारा
राज्य द्वारा चलाई जाने वाली बसें उडीसा और अन्य राज्यों से कोणार्क को सडक द्वारा जोड़ती है। भुवनेश्वर और पुरी से कोणार्क के लिए निजी बस सेवाएं उपलब्ध हैं।

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