Kab Hai Utpanna Ekadashi 2024: अगहन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का महत्व अनेक धर्म ग्रंथों में बताया गया है। जानें इस बार कब है उत्पन्ना एकादशी 2024?
Utpanna Ekadashi 2024 Details: धर्म ग्रंथों के अनुसार, अगहन मास के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण हैं। इसलिए इस महीने में आने वाली एकादशी का विशेष महत्व है। अगहन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि इसी दिन एकादशी तिथि प्रकट यानी उत्पन्न हुई थी, इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी नाम दिया गया। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से हजारों कन्यादान और लाखों गौदान के बराबर का पुण्य प्राप्त होता है। जानें इस बार कब है उत्पन्ना एकादशी 2024, पूजा विधि, मुहूर्त सहित पूरी डिटेल…
पंचांग के अनुसार, अगहन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 25 नवंबर, सोमवार की रात 01 बजकर 02 मिनिट से शुरू होगी, जो अगले दिन यानी 26 नवंबर, मंगलवार की रात 03 बजकर 47 मिनिट तक रहेगी। चूंकि 26 नवंबर को एकादशी तिथि सूर्योदय के समय रहेगी, इसलिए ये व्रत इसी दिन किया जाएगा। इस दिन सौम्य, प्रीति और आयुष्मान योग रहेंगे, जिसके चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।
- सुबह 09:33 से 10:53 तक
- सुबह 11:52 दोपहर 12:35 तक
- दोपहर 12:14 से 01:34 तक
- दोपहर 02:55 से 04:15 तक
- उत्पन्ना एकादशी के एक दिन पहले यानी 25 नवंबर, सोमवार से ही व्रत के नियमों का पालन करें। इस दिन शाम को सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- 26 नवंबर की सुबह सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। जैसा व्रत करना चाहें, वैसा ही संकल्प लें।
- घर का कोई हिस्सा साफ करें और वहां एक लकड़ी का पटिया रखें। शुभ मुहूर्त में इसके ऊपर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
- भगवान की प्रतिमा को तिलक लगाएं व हार-फूल चढ़ाएं। शुद्ध घी का दीपक भी जलाएं। अबीर, रोली, चंदन, हल्दी, चावल आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें।
- पूजा के दौरान ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप भी करते रहें। पूजा के बाद अपनी इच्छा अनुसार भगवान को भोग लगाएं, इसमें तुलसी के पत्ते भी जरूर रखें।
- भगवान की विधि-विधान से आरती करें। दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें यानी कुछ खाएं नहीं, बहुत जरूरी हो तो थोड़ा सा फलाहार कर सकता है।
- दिन भर क्रोध न करें, किसी की बुराई न करें। रात में सोए नहीं, भजन-कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करें। अगली सुबह ब्राह्मणों को दान कर पारणा करें।
- पारणा करने के बाद स्वयं भोजन करें। इस प्रकार उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से सभी कष्ट दूर हो सकते हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥
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