Janmashtami 2023: गाना-बजाना, खाना पकाना और कोड लैंग्वेज में बात करना, ये सब कहां सीखा था श्रीकृष्ण ने?

Janmashtami 2023: इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 7 सितंबर, गुरुवार को पूरे देश में मनाया जा रहा है। इस मौके पर प्रमुख कृष्ण मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। भगवान श्रीकृष्ण को अनेक कलाओं का ज्ञान था जैसे गाना-बजाना, खाना पकाना आदि।

 

उज्जैन. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami 2023) का पर्व 7 सितंबर, गुरुवार को मनाया जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण को हम सिर्फ एक योद्धा और लाइफ मैनेजमेंट गुरु के रूप में जानते हैं, लेकिन इसके अलावा भी श्रीकृष्ण को अनेक कलाओं का ज्ञान था। वे न सिर्फ अच्छा खाना पकाने में निपुण थे बल्कि बाल संवारने, पशु-पक्षियों की बातों को समझने की कला में भी निपुण थे। ये बात बहुत ही कम लोगों को पता है कि श्रीकृष्ण ने ये सब कलाएं कहां सीखी थी। आगे जानिए श्रीकृष्ण को कौन-कौन-सी कलाओं का और वे उन्होंने कहां सीखी थी…

यहां सीखी थी श्रीकृष्ण ने 64 कलाएं
कंस का वध करने के बाद श्रीकृष्ण शिक्षा प्राप्त करने के लिए अवंतिकापुरी आए, जो आज उज्जैन के नाम से जाना जाता है। यहां उन्होंने गुरु सांदीपनि के आश्रम में रहकर 64 दिनों में ही वेद, संहिताओं, उपनिषदों का अध्ययन किया और सभी 64 कलाएं भी सीख लीं। उज्जैन में आज भी सांदीपनि गुरु का आश्रम अंकपात मार्ग पर स्थित है।

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ये 64 कलाएं सिखी थीं कृष्ण ने…
गीत कला - गीत लेखन, गायन आदि की कला।
वाद्य कला - हर तरह के वाद्यों को बजाने की कला।
नृत्य कला - विभिन्न नृत्यशैलियों का ज्ञान।
आलेख्य कला - विभिन्न लेखन शैलियों का ज्ञान।
विशेषकच्छेद्य कला - कागज, पत्ती आदि काटकर आकार या सांचे बनाना।
तण्डुल-कुसुमबलिविकार कला- देव-पूजनादि के अवसर पर तरह-तरह के रंगे हुए चावल, जौ आदि वस्तुओ तथा रंगबिरंगे फूलों को विविध प्रकार से सजाना।
पुष्पास्तरण कला - फूलों के रंग, खुश्बू, रस आदि का ज्ञान।
दशनवसनांगराग कला - रंगने की कला, दांत, वस्त्र तथा शरीर के अंगों को रंगना।
मणिभूमिका-कर्म कला - घर के फर्श के कुछ भागों को मोती, मणि आदि रत्नों से जड़ना।
शयनरचन कला - पलंग लगाना, बिस्तर सजाना आदि।
उदकवाद्य कला - जलतरंग बजाना।
उदकाघात कला - दूसरों पर हाथों या पिचकारी से जल की चोट मारना।
चित्राश्च योगा कला - जड़ी-बूटियों और मंत्रों से शत्रुओं को कमजोर करना।
माल्यग्रंथनविकल्प कला - माला गूंथना।
शेखरकापीड़योजन कला - केशसज्जा।
नेपथ्यप्रयोग कला - शरीर को वस्त्र, आभूषण, पुष्प आदि से सुसज्जित करना।
कर्णपत्रभंग कला - शंख, हाथीदांत आदि के अनेक तरह के कान के आभूषण बनाना।
गन्धयुक्ति कला - सुगन्धित धूप, इत्र आदि बनाना।
भूषणयोजन कला - आभूषणों को व्यवस्थित करने, पहनने की कला।
इन्द्रजाल कला - जादू के खेल, जादूगरी
कौचुमारयोग कला - बल-वीर्य बढ़ाने वाली औषधियाँ बनाना।
हस्तलाघव कला - हाथों की काम करने में फुर्ती और सफ़ाई।
विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकार-क्रिया कला - तरह-तरह की सब्जियों, शाक, कढ़ी, रस, मिठाई आदि बनाने की कला।
पानकरस-रागासव-योजन कला - विविध प्रकार के शरबत, रस आदि बनाना।
सूचीवान कर्म कला - सुई का काम, जैसे सीना, रफू करना, कसीदा काढ़ना, बुनना।
सूत्रक्रीड़ा कला - धागों या रस्सियों से खेले जाने वाले खेल, जैसे कठपुतलियों को नचाना।
वीणाडमरूकवाद्य कला - वीणा, डमरू आदि वाद्यों को बजाना।
प्रहेलिका कला - पहेलियां बनाना और पहेलियों को सुलझाना।
प्रतिमाला कला - श्लोक आदि कविता पढ़ने की मनोरंजक रीति। सुर में कविता पाठ करना।
दुर्वाचकयोग कला - ऐसे श्लोक आदि पढ़ना, जिनका अर्थ और उच्चारण दोनों कठिन हों।
पुस्तक-वाचन कला - पुस्तक को गति और लय से पढ़ना।
नाटकाख्यायिका-दर्शन कला - नाटकों के जरिए दर्शन की बात कहना।
काव्य समस्यापूरण कला - काव्य रचना के जरिए समस्याओं के निदान सुझाना।
पट्टिकावेत्रवानविकल्प कला - पीढ़ा, आसन, कुर्सी, पलंग आदि बनाना।
तक्षकर्म कला - लकड़ी, धातु आदि को अभष्टि विभिन्न आकारों में काटना।
तक्षण कला - बढ़ई का काम, लकड़ी के औजार, साधन आदि बनाना।
वास्तुविद्या कला - भवन निर्माण, स्थल चयन आदि के वास्तु का संपूर्ण ज्ञान।
रूप्यरत्नपरीक्षा कला - सिक्के, रत्न आदि की पहचान करना।
धातुवाद कला - पीतल, लौहा, सोना, चांदी आदि धातुओं को मिलाना, शुद्ध करना आदि।
मणिरागाकर ज्ञान कला - मणि आदि का रँगना, खान आदि के विषय का ज्ञान।
वृक्षायुर्वेदयोग कला - विभिन्न वृक्षों के औषधिय गुणों को जानना, उनसे चिकित्सा करना।
मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधि कला - मेंढे, मुर्गे, तीतर आदि पशुओं को लड़ाना।
शुकसारिका प्रलापन कला - तोता-मैना आदि पक्षियों को बोली सिखाना।
उत्सादन-संवाहन केशमर्दनकौशल कला - हाथ-पैरों से शरीर दबाना, केशों का मलना, उनका मैल दूर करना आदि, मालिश करना।
अक्षरमुष्टिका कथन - गुप्त भाषा में बात करना, कोड-वर्ड में बात करना।
म्लेच्छित विकल्प कला - गुप्त भाषा में लिखना, कोड-लैंग्वेज।
देशभाषा-विज्ञान कला - किसी भी देश में वहां की भाषा को तत्काल सीख लेना।
पुष्पशकटिका कला - टीका लगाने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियों से सांचें बनाना।
निमित्तज्ञान कला - शकुन-अपशकुन जानना।
यन्त्र मातृका कला - हर तरह के मशीन, कल, पुर्जे आदि बनाना।
धारणमातृका कला - सुनी हुई बातों का स्मरण रखना।
संपाठ्य कला - पढ़ते ही याद कर लेने की कला।
मानसी काव्य-क्रिया कला - किसी श्लोक में छोड़े हुए पद को मन से पूरा करना।
अभिधानकोष कला - हर तरह के कोषों के प्रबंधन की कला।
छन्दोज्ञान कला - व्याकरण संबंधी ज्ञान।
क्रियाकल्प कला - काव्यालंकारों का ज्ञान।
छलितक योग कला - रूप और बोली छिपाना, वेष बदलना, विभिन्न तरह के मेकअप करना।
वस्त्रगोपन कला - शरीर के अंगों को छोटे या बड़े वस्त्रों से यथायोग्य ढँकना।
द्यूतविशेष कला - जुआ खेलने की कला।
आकर्ष-क्रीड़ा कला - पासों से खेलना।
बालक्रीड़नक कला - बच्चों के खेलों का ज्ञान।
वैनयिकी ज्ञान कला - अपने और पराये से विनयपूर्वक शिष्टाचार करना।
वैजयिकी-ज्ञान कला - विजय प्राप्त करने की विद्या अर्थात् शस्त्रविद्या।
व्यायामविद्या कला - हर तरह के शारीरिक और मानसिक व्यायाम का ज्ञान।


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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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