Kamakhya Temple Facts: कामाख्या मंदिर में किस-किस पशु-पक्षी की दी जाती है बलि? जानें यहां के 5 रहस्य

Kamakhya Temple Rare Facts: असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर अपनी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां रोज हजारों पशु-पक्षियों की बलि दी जाती है। दूर-दूर से तांत्रिक यहां तंत्र क्रिया की सिद्धि के लिए आते हैं।

 

Manish Meharele | Published : Jun 22, 2024 5:14 AM IST

Ambubachi Mela 2024: हमारे देश में देवी के अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं, इन्हीं में से एक है असम के गुवाहाटी में स्थित कामख्या मंदिर। ये मंदिर अपनी रहस्यमयी परंपराओं के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। यहां रोज हजारों पशु-पक्षियों की बलि दी जाती है। कहते हैं कि किसी समय यहां नर बलि देने की प्रथा भी थी, जो बाद में बंद कर दी गई। इस मंदिर का तांत्रिक महत्व भी है। आगे जानें इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…

किस-किस पशु-पक्षी की दी जाती है बलि?
कामाख्या मंदिर में अनेक पशु-पक्षियों की बलि देने की परंपरा है। इनमें से कुछ परंपरा तो काफी वीभत्स है। इस मंदिर में भेड़, बकरा, मछली के साथ-साथ कबूतरों की बलि देने की भी प्रथा है। कामाख्या पीठ में देवधानी नाम का उत्सव हर साल मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान पुजारी कबूतरों की बलि देते हैं। विचलित करने वाली बात ये है कि पुजारी अपने मुंह से काटकर जिंदा कबूतरों की बली देते हैं। ये परंपरा इस प्राचीन मंदिर में सैकड़ों सालों से चल रही है।

कभी दी जाती थी भैंसे की बलि
कुछ सालों पहले तक कामाख्या मंदिर में भैसें की बलि देने की परंपरा भी थी, लेकिन कुछ कारणों के चलते इस प्रथा पर रोक लगा दी गई। इस मंदिर के बारे में ये भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में यहां नर बलि भी दी जाती थी यानी मनुष्यों का सिर काटकर देवी को अर्पित की जाता था। कालांतार में ये प्रथा भी बंद हो गई।

तांत्रिक का लगता है जमावड़ा
कामाख्या मंदिर में तांत्रिकों का जमावड़ा लगा रहता है। यहां दूर-दूर से तांत्रिक तंत्र सिद्धियां प्राप्त करने आते हैं। इस दौरान वे पशु-पक्षियों की बलि भी देते हैं। साल 2019 में मंदिर प्रांगण में एक महिला की सिर कटी लाश मिली थी। जांच करने पर पुलिस को पता चला कि तांत्रिकों ने इस महिला की बलि देवी को चढ़ाई थी।

यहां बलि देने की परंपरा क्यों?
हिंदू धर्म में पूजा की कईं पद्धतियां हैं। इनमें से एक है तामसिक पद्धति। इसके अंतर्गत पशु-पक्षियों की बलि देकर देवी को प्रसन्न किया जाता है। कामाख्या मंदिर में भी इसी पद्धति के अंर्तगत पूजा की जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, यहां देवी सती का योनी भाग गिरा था। उसकी पूजा यहां की जाती है।

अंबुबाची मेला होता है खास
कामाख्या मंदिर में हर साल अंबुबाची मेला लगता है। इस बार ये मेला 22 जून से 26 जून तक लगेगा। इन 3 दिन तक कामाख्या मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। कोई भी मंदिर में प्रवेश नहीं करता। मान्यता है कि इन 3 दिनों में माता रजस्वला स्थिति में होती है। 3 दिन बाद मंदिर के कपाट फिर से खोल दिए जाते हैं।


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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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