न जलाना, न दफनाना...पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार की अजीब परंपरा, जानकर आप भी हो जाएंगे दंग

पारसी समाज के लोगों की संख्या भले ही बहुत कम रह गई हो लेकिन उनके महत्वपूर्ण योगदान के चलते समाज में उनका अलग महत्व है। पारसी धर्म के बारे में अभी भी बहुत कम जानते हैं। इनके धार्मिक रिवाज और कल्चर से अभी भी अपरिचित हैं।

Yatish Srivastava | Published : Dec 29, 2023 3:51 PM IST

भारत में हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई के साथ पारसी समुदाय भी है जो संख्या में कम होने के बाद भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं। पारसी समाज के लोगों की संख्या काफी कम हो गई है लेकिन फिर भी उनकी प्रतिष्ठा समाज में बनी हुई है। आइए जानते हैं पारसी समुदाय के रीति-रिवाजों और धार्मिक संस्कारों के बारे में।

दूसरे धर्मों से काफी अलग पारसी समुदाय
पारसी धर्म दूसरे समुदाय से बिल्कुल अलग है। यहां व्यक्ति की मौत के बाद न तो उसे जलाया जाता है और न ही उसे बहाया जाता है। हिन्दू और सिक्ख समाज में शव जलाते हैं जबकि मुस्लिम और ईसाई समाज में शव दफनाते हैं लेकिन पारसी समाज में अंतिम संस्कार का अलग तरीका है। पारसी समाज में किसी की मृत्यु होने पर शव को टॉवर ऑफ साइलेंस यानी दखमा ले जाते हैं।

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पारसी धर्म की मान्यता
पारसी धर्म की अलग मान्यता है। पारसी धर्म में अग्नि, जल और भूमि को पवित्र मानते हैं। ऐसे में किसी की मौत होने शव को जलाते नहीं हैं क्योंकि अग्नि अपवित्र होगी, दफनाने पर धरती अपवित्र होंगी और बहाने पर जल दूषित होगा। ऐसे में पारसी में शव का टॉवर ऑफ साइलेंस ले जाते हैं।

क्या है टॉवर ऑफ साइलेंस
टावर ऑफ साइलेंस एक गोलाकार चबूतरा होता है। पारसी समुदाय में मौत होने पर शवों इस टॉवर ऑफ साइलेंस के सुपुर्द कर दिया जाता है। यानी इसे खुले आसमान के हवाले कर दिया जाता है। इसके बाद मृत शरीर को गिद्ध और चील खाते हैं। ॉ

3000 साल पुराना परंपरा
पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार की ये परंपरा 3 हजार साल से चली आ रही है। समय के साथ अब गिद्ध और चीलों की संख्या में कमी आने के कारण पारसी समुदाय के लोगों को अंतिम संस्कार करने में काफी परेशानी भी होती है।    

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