Maha Kumbh 2025: महाकुंभ 2025 में साधु-संत इकट्ठा हैं। इन सभी साधु-संतों के मस्तक पर आपको तिलक जरूर दिखेगा। तिलक लगाना हर साधु के लिए अनिवार्य होता है क्योंकि इसी से इनके संप्रद्राय की पहचान होती है।
प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में अलग-अलग अखाड़ों और संप्रदायों से जुड़े साधु-संत आए हुए हैं। इन सभी साधुओं में एक बात कॉमन है, कि ये तिलक जरूर लगाते हैं। हर अखाड़े और संप्रदाय का अपना विशेष तिलक होता है, इसी से साधुओं की पहचान भी होती है। अगर हिसाब लगाया जाए तो 80 से ज्यादा प्रकार के तिलक साधुओं में प्रचलित हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा वैष्णव साधुओं में 64 तरह के तिलक लगाए जाते हैं। आगे जानिए साधुओं के तिलक से जुड़ी रोचक बातें…
इस बार 8000 साधुओं को दी जाएगी नागा पदवी, जानें कितना करना पड़ता है इंतजार
शैव परंपरा के साधु अपने मस्तक पर त्रिपंड लगाते हैं। शैवों में सबसे ज्यादा प्रचलित यही तिलक है। त्रिपुंड तिलक भगवान शिव के सिंगार का हिस्सा है। शैव परंपरा में जिनके पंथ बदल जाते हैं, जैसे अघोरी, कापालिक तांत्रिक तो उनके तिलक लगाने की शैली अपने पंथ और मत के अनुसार बदल जाती है।
शाक्त उन लोगों को कहते हैं जो देवी के उपासक होते हैं। वे चंदन या कुंकुम की बजाय सिंदूर का तिलक लगाते हैं। सिंदूर उग्रता का प्रतीक है जो इन्हें चैतन्य रखता है। ज्यादातर शाक्त आराधक कामाख्या देवी के सिद्ध सिंदूर का उपयोग करते हैं।
वैष्णव संप्रदाय राम और कृष्ण मार्गी परंपरा में बंटा हुआ है। राम और कृष्ण मार्गी के अंतर्गत भी अनेक मत हैं, इन सभी के तिलक भी अलग-अलग हैं। वैष्णव परंपरा में 64 प्रकार के तिलक बताए गए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख तिलक इस प्रकार हैं-
लालश्री तिलक: राम मार्गी इस तरह का तिलक लगाते हैं। इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनाई जाती है।
विष्णुस्वामी तिलक: ये तिलक भी राम मार्गी मत के संत लगाते हैं। यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भोहों के बीच तक आता है।
रामानंद तिलक: ये सबसे प्रचलित तिलक है। इस तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है।
श्यामश्री तिलक: इसे कृष्ण मार्गी वैष्णव संत लगाते हैं। इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।
अन्य प्रकार के तिलकों में गणपति आराधक, सूर्य आराधक, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। इनकी अपनी-अपनी उपशाखाएं भी हैं, जिनके अपने तरीके और परंपराएं हैं। कई साधु व संन्यासी भस्म का तिलक भी लगाते हैं।
ये भी पढ़ें-
कब होगा महाकुंभ 2025 का पांचवां स्नान? नोट करें डेट और शुभ मुहूर्त
महाकुंभ: 'राम' भक्ति का अनोखा रंग, जानिए आकर्षण का केंद्र बने विनोद मिश्रा
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो ज्योतिषियों द्वारा बताई गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।