Maha Kumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू हो चुका है, जो 26 फरवरी तक रहेगा। महाकुंभ में आपको अनेक साधु धुनि रमाते दिख जाएंगे। ये कोई साधारण धूनि नहीं होती। इसमें भी कईं रहस्य हैं।
The secrets of the sadhus' Dhuni: प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 में हर ओर आपको साधुओं के कैंप नजर आएंगे। इन सभी कैंप मे एक बात समान है, वो है यहां जलने वाली धुनि। साधुओं के कैंप में जल रही धुनियां बरबस ही सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेती हैं। लोगों के मन में धुनि को लेकर कई जिज्ञासाएं हैं। आखिर साधु धुनि क्यों जलाते हैं। इसमें में कईं रहस्य छिपे हैं। आगे जानिए साधुओं की धुनि से जुड़ी खास बातें…
कैसे किया जाता है नागा साधुओं का ’लिंग भंग’?
किसी भी साधु द्वारा जलाई गई धुनि कोई साधारण आग नहीं होती। इसे सिद्ध मंत्रों से शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है। कोई भी साधु इसे अकेले नहीं जला सकता। इसके लिए उसके गुरु का होना जरूरी होता है। गुरु की ही अनुमति से धुनि जलाई जाती है। इस धुनि में साधुओं का पूरा तप और बल समाया होता है। साधु जैसे ही कहीं डेरा जमाते हैं, वहां सबसे पहले धुनि जलाई जाती है।
ये धुनि साधुओं की जीवन शैली का अभिन्न अंग हैं। जो साधु जितने दिनों के लिए कहीं रुकता है, उतने दिनों तक धुनि निरंतर जलती रहती है। यह जिम्मेदारी उसी साधु की होती है, जो इसे जलाता है। इस कारण उसे हमेशा धुनि के आसपास ही रहना पड़ता है। अगर किसी कारण से साधु कहीं जाता है तो उस समय धुनि के पास उसका कोई सेवक या शिष्य रहता है।
साधुओं के पास जो चिमटा होता है, वह वास्तव में धुनि की सेवा के लिए होता है। उस चिमटे का कोई और उपयोग नहीं किया जाता। इसी चिमटे से धुनि की आग को व्यवस्थित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई साधु धुनि के पास बैठकर कोई बात कहता है, कोई आशीर्वाद देता है तो वह जरूर पूरा होता है। नागा साधु का लगभग पूरा जीवन अपनी इसी धुनि के आसपास गुजरता है।
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