mahabharat interesting facts: ये बात तो सभी जानते हैं कि दुर्योधन के 99 भाई और थे, जिनमें दु:शासन और विकर्ण आदि प्रमुख थे। लेकिन ये बात बहुत कम लोगों को पता है कि दुर्योधन की एक बहन भी थी, जिसका नाम दु:शला था।
Duryodhan's sister Dushala interesting facts: महाभारत कथा में बहुत से ऐसे पात्र यानी किरदार हैं, जिनके बारे में कम ही लोगों को जानकारी है। दुर्योधन की बहन भी इन पात्रों में से एक है। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि दुर्योधन की एक बहन भी थी, जिसका जन्म भी कौरवों के साथ ही हुआ था। ये अपने 100 भाइयों से छोटी थी। आगे जाने क्या था दुर्योधन की इस बहन का नाम और अन्य बातें…
कैसे हुआ कौरवों और उनकी बहन का जन्म?
महाभारत के अनुसार, एक बार महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर आए, यहां गांधारी ने उनकी खूब सेवा की। प्रसन्न होकर उन्होंने गांधारी को 100 पुत्र होने का वरदान दिया। समय आने पर गांधारी को गर्भ ठहरा लेकिन 2 साल तक कोई संतान नहीं हुई। बाद में गांधारी के गर्भ से एक मांस का गोला निकला तो लोहे की तरह सख्त था। गांधारी उसे फेंकना चाहती थी लेकिन महर्षि वेदव्यास ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। महर्षि वेदव्यास ने उस मांस पिंड पर पानी झिड़का, जिससे वो मांस पिंड 101 भागों में बंट गया। गांधारी ने उन मांस पिंडों को अलग-अलग मटकों में विशेष द्रव्य में डाल दिया, जिससे गांधारी के 100 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ।
क्या था दुर्योधन की बहन का नाम
महाभारत के अनुसार, दुर्योधन की बहन का नाम दु:शला था, जो अपने सभी 100 भाइयों से सबसे छोटी थी। बचपन से ही पांडव भी दु:शला को अपनी बहन की तरह ही प्रेम करते थे। इसी कारण एक बार युधिष्ठिर ने उसके पति जयद्रथ को प्राण दंड न देकर जीवित ही छोड़ दिया था। महाभारत में दु:शला के बारे में इससे अधिक वर्णन नहीं मिलता।
कौन था दु:शला का पति?
धृतराष्ट्र ने अपनी पुत्री का विवाह सिंधु देश के राजा जयद्रथ से करवाया था। जयद्रथ बहुत ही शक्तिशाली योद्धा था। जब पांडव वनवास काट रहे थे, तब एक दिन जयद्रथ जंगल से गुजर था। तब उसने द्रौपदी को अकेला देखकर उसका अपहरण करने की कोशिश की। लेकिन अर्जुन और भीम ने उसे पकड़ लिया। पांडवों ने उसका वध तो नहीं किया लेकिन अपमानित कर छोड़ दिया।
जब अर्जुन के पास होती हुई आई दु:शला
महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया। उस यज्ञ के घोड़े का रक्षक अर्जुन को बनाया गया। यज्ञ का वो घोड़ा एक दिन घूमते हुए सिंधु देश जा पहुंचा। वहां सिंधु देश के सेना से अर्जुन का भंयकर युद्ध हुआ। तभी युद्ध के बीच में अपने छोटे से पोते को लेकर युद्ध भूमि में आ गई और युद्ध रोकने लिए प्रार्थना की। अर्जुन ने भी अपनी बहन की बात मान ली और सिंधु देश को छोड़ आगे बढ़ गए।
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