Shani Shingnapur Katha: देश का एकमात्र शनि मंदिर जिसकी छत नहीं है, कारण बहुत कम लोग जानते हैं

Shani Jayanti 2023: हर साल ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 19 मई, शुक्रवार को है। इस दिन शनि मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि शनि जयंती पर शनिदेव की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

 

उज्जैन. वैसे तो हमारे देश में शनिदेव के कई प्राचीन मंदिर हैं, लेकिन इन सभी में शनि शिंगणापुर (Shani Shingnapur Temple) सबसे विशेष है। ये मंदिर महाराष्ट्र (Maharashtra) के अहमदनगर (Ahmednagar) में स्थित है। मान्यता है कि यही स्थान शनिदेव का जन्मस्थल है। शनि जयंती (Shani Jayanti 2023) के मौके पर यहां विशेष आयोजन किए जाते हैं। इस बार शनि जयंती का पर्व 19 मई, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस मौके पर हम आपको शनि शिंगणापुर मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…

बिना छत का है ये मंदिर
शनि शिंगणापुर मंदिर में भगवान शनिदेव की प्रतिमा खुले आसमान के नीचे स्थित है। इस मंदिर में कोई छत नहीं है। कहते हैं कि जब भी शनि प्रतिमा के ऊपर छत डालने का प्रयास किया गया तो इसमें सफलता नहीं मिल पाई। इसके बाद सभी ने ये मान लिया कि शनिदेव को किसी की छाया में रहना पसंद नहीं है। यही सोचकर आज भी शनिदेव की प्रतिमा यहां खुले चबूतरे में स्थापित है।

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इस गांव के घरों में नहीं लगते ताले
शिंगणापुर, जहां शनिदेव का ये मंदिर स्थापित है, उस गांव में एक बहुत ही अजीब परंपरा है। यहां लोग अपने घरों पर ताले नहीं लगाते और न हीं अपने पैसे आदि कीमती सामान तिजोरी आदि में रखते हैं। कहते हैं कि यदि शनिदेव के इस स्थान पर कोई भी व्यक्ति चोरी आदि करता है तो शनिदेव स्वयं उसे दंड देते हैं। यही कारण है कि यहां चोरी आदि का भय किसी को नहीं रहता।

केसरिया कपड़े पहनकर ही करते हैं अभिषेक
शनि शिंगणापुर में शनिदेव का अभिषेक तेल से करने की परंपरा हैं। लेकिन ये काम सिर्फ पुरुष ही कर सकते हैं। महिलाओं के शनिदेव को तेल चढ़ाने पर पाबंदी है। अभिषेक करने से पहले पुरुषों को स्नान करना और केसरिया कपड़े पहनना जरूर होता है। इसके बिना शनिदेव का अभिषेक नहीं कर सकते।

शनि मंदिर की कथा (Shani Shingnapur Katha)
शनि शिंगणापुर मंदिर के बारे में एक कथा प्रचलित है, उसके अनुसार, किसी समय एक अंधे साधु शिंगणापुर में आए। रात में उनके सपने में शनिदेव आए और बोले “इस गांव में जमीन के अंदर मेरी प्रतिमा है, उसे बाहर निकालकर स्थापित करो।”
पंडितजी ने शनिदेव से कहा कि “मैं तो अंधा हूं, फिर ये काम कैसे कर सकता हूं।”
पंडित की बात सुनकर शनिदेव ने उनकी आंखों की रोशनी लौटा दी। पंडितजी शनिदेव द्वारा बताए गए स्थान पर खुदाई तो वहां से काले पत्थर की एक विशाल शिला निकली। पंडितजी ने इसे ही शनिदेव का रूप मानकर पूजा की। बाद में भक्तों ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण करवा दिया।


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