
Bihar Chunav 2025: बिहार की राजनीति में एक पुराना किरदार फिर से मंच पर लौट आया है। एक ऐसा नाम, जिसे कभी लालू प्रसाद यादव का सबसे करीबी माना जाता था। जो कभी राजद का कार्यकारी अध्यक्ष था, जिसे 'प्रॉक्सी मुख्यमंत्री' और 'सुपर सीएम' कहा जाता था और जिसने एक समय में लालू को ही लोकसभा चुनाव में हरा दिया था। हम बात कर रहे हैं 79 वर्षीय रंजन प्रसाद यादव की। कभी लालू यादव के 'बड़े भाई' माने जाने वाले रंजन यादव बिहार चुनाव को लेकर फिर से सुर्खियों में हैं। अब राजद ने 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें एक बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी है। रंजन यादव को राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया है।
90 के दशक की बिहार की राजनीति में रंजन यादव का नाम सबसे अहम किरदारों में से एक रहा है। रंजन प्रसाद यादव राज्यसभा सांसद रह चुके हैं। वे राजद के साथ-साथ जनता दल (यूनाइटेड) राजनीतिक दल के सदस्य भी रहे हैं। लालू यादव के बेहद करीबी माने जाने वाले रंजन उस दौर में राजद के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे। कहा जाता है कि लालू के कई फैसले रंजन यादव की सलाह के बिना संभव नहीं थे। खासकर, शिक्षा विभाग की पूरी कमान उनके पास थी। पटना विश्वविद्यालय के साइंस कॉलेज से पढ़ाई करने वाले रंजन यादव ने भूविज्ञान में एमएससी करने के बाद डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। राजनीति में आने से पहले, उन्होंने एक प्रोफेसर के रूप में काम किया।
लालू-राबड़ी शासन के शुरुआती 7-8 सालों में रंजन यादव की भूमिका किसी मुख्यमंत्री से कम नहीं थी। नाला रोड स्थित उनका आवास एक अनौपचारिक सत्ता केंद्र बन गया था। नियुक्तियों से लेकर नीति निर्धारण तक, रंजन यादव का प्रभाव हर जगह दिखता था। यही वजह थी कि उन्हें 'सुपर सीएम' कहा जाने लगा।
लालू यादव और रंजन यादव की दोस्ती बहुत पुरानी है। 1960 के दशक के अंत में जब लालू यादव समाजवादी युवजन सभा (एसएसपी की छात्र शाखा) में शामिल हुए, तब रंजन यादव पटना विश्वविद्यालय में भूविज्ञान के प्रोफ़ेसर थे। उन्होंने छात्र राजनीति में लालू का मार्गदर्शन किया। दोनों के बीच रणनीतिक चर्चाएं अक्सर रंजन यादव के नाला रोड स्थित आवास पर होती थीं। 1990 में जब लालू यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने, तो उनका पहला दौरा रंजन यादव के घर हुआ। इसी रिश्ते ने रंजन को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष और बाद में राज्यसभा सांसद (1990 से 2002 तक) भी बनाया।
लालू के पहले मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान, शिक्षा विभाग पर रंजन यादव का सबसे ज़्यादा प्रभाव था। कई फ़ैसले उनकी सलाह पर लिए जाते थे। लेकिन 1996 में, जब लालू को चारा घोटाले में जेल जाना पड़ा और उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया, तो दोनों नेताओं के बीच अनबन शुरू हो गई। आरोप लगे कि रंजन यादव के आवास पर विधायकों और बुद्धिजीवियों का जमावड़ा लग रहा था। परिणामस्वरूप, उन्हें राजद के कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटा दिया गया।
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रंजन यादव बाद में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी में शामिल हो गए और 2009 से पहले जदयू में शामिल हो गए। यहीं से उन्होंने पटना की पाटलिपुत्र सीट पर लालू को 23,000 से ज़्यादा वोटों से हराया। शरद यादव के बाद, लोकसभा चुनाव में लालू को हराने वाले वे दूसरे नेता बने। हालांकि, 2014 के बाद, वे जदयू में हाशिये पर चले गए। उन्हें कोई बड़ी भूमिका नहीं मिली और 2019 में भी वे चुनावी मैदान से दूर रहे।
जब 2024 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव की बेटी मीसा भारती का सामना रामकृपाल यादव से हुआ, जिन्होंने उन्हें लगातार दो बार हराया था, तो लालू को अपने पुराने विश्वासपात्र रंजन यादव की याद आई। रंजन को पार्टी में फिर से शामिल किया गया और नतीजा यह हुआ कि मीसा भारती चुनाव जीत गईं।
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2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लालू यादव ने एक बार फिर रंजन यादव पर दांव लगाया है। उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या रंजन यादव फिर से लालू और तेजस्वी की नैया पार लगाएंगे? क्या रंजन यादव फिर से राजद की जीत के सूत्रधार बनेंगे? क्या उनका नाला रोड वाला जादू एक बार फिर चलेगा? ये सवाल आने वाले चुनावों में बिहार की राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं।
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