न श्मशान और न कब्रिस्तान! फिर कहां अंतिम संस्कार करता है बिश्नोई समाज

बिश्नोई समाज अपने अनोखे अंतिम संस्कार के लिए जाना जाता है। न श्मशान, न कब्रिस्तान, वे अपने घर में ही मृतक को दफनाते हैं, पर्यावरण संरक्षण के अपने सिद्धांतों का पालन करते हुए।

Arvind Raghuwanshi | Published : Oct 19, 2024 8:12 AM IST

जयपुर. काला हिरण , सलमान खान , बाबा सिद्दीकी,  लॉरेंस बिश्नोई और बिश्नोई समाज पिछले कुछ दिन से इन कुछ शब्दों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है ।‌बिश्नोई समाज से जुड़ा हुआ लॉरेंस बिश्नोई सलमान खान को मारने की धमकी दे चुका है और बाबा सिद्दीकी के मर्डर का जिम्मा ले चुका है । कई आरोपी पकड़े जा चुके हैं , कई अभी भी फरार हैं।  दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में हड़कंप मचा हुआ है । राजस्थान से भी बिश्नोई समाज के बड़े नेता लगातार प्रतिक्रिया दे रहे हैं ।

बिश्नोई समाज का ना शमशान घाट ना  कब्रिस्तान और ना ही मोक्ष धाम

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हम सभी जानते हैं बिश्नोई समाज पेड़ , पौधे और जीव जंतुओं के  संरक्षण के लिए हमेशा प्रयासरत रहा है, लेकिन समाज से जुड़े कुछ ऐसे नियम है जो बिल्कुल अलग और हैरान करने वाले हैं । उनमें सबसे ज्यादा अलग प्रथम अंतिम संस्कार की है।  बिश्नोई समाज के पास खुद के शमशान घाट,  कब्रिस्तान या मोक्ष धाम नहीं है , फिर वे लोग कैसे अंतिम संस्कार करते हैं ।

29 नियमों का पालन करता है बिश्नोई समाज

बिश्नोई समाज, जो प्राकृतिक संरक्षण और वन्य जीवों के प्रति अपनी निष्ठा के लिए जाना जाता है, अपने अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के लिए भी विशिष्ट पहचान रखता है। इस समाज के लोग गुरु जम्भेश्वर के 29 नियमों का पालन करते हैं, जिनमें वन और जीव संरक्षण पर जोर दिया गया है।

अंतिम संस्कार के लिए चिता नहीं बनाई जाती

बिश्नोई समाज में अंतिम संस्कार के लिए चिता नहीं बनाई जाती। इसके बजाय, मृतक को दफनाने की परंपरा है, जिसे "मिट्टी लगाना" कहा जाता है। इस प्रक्रिया के तहत, शव को पैतृक भूमि पर गड्ढा खोदकर दफनाया जाता है। समाज का मानना है कि शव को जलाने से लकड़ी की आवश्यकता पड़ती है, जिससे हरे पेड़ों की कटाई होती है और पर्यावरण को हानि पहुंचती है।

शव को गंगाजल मिलाकर नहलाया जाता

जब किसी सदस्य का निधन होता है, तो शव को जमीन पर रखा जाता है और उसे छने पानी में गंगाजल मिलाकर नहलाया जाता है। फिर, शव को कफन पहनाया जाता है, जिसमें पुरुषों के लिए सफेद और महिलाओं के लिए लाल या काले कपड़े का उपयोग किया जाता है। शव को अर्थी पर नहीं ले जाया जाता; इसके बजाय, मृतक के बेटे या भाई शव को कांधे पर लेकर अंतिम संस्कार स्थल तक जाते हैं।

शव को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके दफनाया जाता

गड्ढा खोदने की प्रक्रिया में, शव को घर में ही दफनाया जाता है। शव को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके दफनाया जाता है, और मृतक के बेटे द्वारा कहा जाता है, “यह आपका घर है।” इसके बाद, शव को मिट्टी से ढक दिया जाता है। अंतिम संस्कार के बाद, गड्ढे के ऊपर पानी डालकर बाजरी बरसाई जाती है। शव को कंधा देने वाले लोग उस स्थान पर स्नान करते हैं, जिससे शुद्धिकरण की प्रक्रिया पूरी होती है। इस अनोखे अंतिम संस्कार के जरिए बिश्नोई समाज अपने पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है।

पूरे देश में करीब 13 लाख से ज्यादा बिश्नोई समाज के लोग

बिश्नोई समाज की मौजूदगी की बात करें तो पूरे देश में करीब 13 लाख से ज्यादा बिश्नोई समाज के लोग रह रहे हैं । इनमें सबसे ज्यादा 9 लाख राजस्थान में और करीब 2 लाख हरियाणा में रह रहे हैं । उसके बाद अन्य राज्यों का नंबर आता है।

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