
बूंदी ( bundi). यह शिवांग है जिसकी उम्र 2 साल है। दादा दादी का लाड़ला और माता-पिता की आंखों का तारा, लेकिन इसकी नियति इतनी कठोर रही है कि सब कुछ दिल झकझोर देने वाला है। इस मासूम बच्चे ने इतनी सी उम्र में ही कुछ दिन पहले अपने पिता को मुखाग्नि दी है और गुरुवार शाम अपनी मां का अंतिम संस्कार किया है। जब वह अपनी दादा की गोद से अपनी मां की अर्थी को आग दे रहा था उस समय वहां मौजूद सैकड़ों लोग रो रहे थे। यह सब कुछ बूंदी जिले के नैनवा क्षेत्र का घटना क्रम है।
पहले बीमारी ने ले ली पिता की जान
नैनवा क्षेत्र में स्थित फुलेता गांव में रहने वाले शिवांग के पिता विनोद की करीब 4 से 5 महीने पहले मौत हो गई थी। विनोद को तेज बुखार हुआ था और अस्पताल पहुंचने से पहले ही बुखार ने शरीर के कई अंगों को डैमेज कर दिया था। कुछ दिन अस्पताल में भर्ती रहने के बाद विनोद की मौत हो गई थी। बेटे की मौत को झेल परिवार ने जीना सीख लिया।
अभी भी नहीं रुका नियति का खेल
घर में इकलौते कमाने वाले विनोद की मौत के बाद परिवार वैसे ही दुखों के अंदर जी रहा था। लेकिन अभी नियति का एक और कठोर कदम बाकी था। पति विनोद की मौत के बाद पत्नी स्नेह लता ने अपने पैरों पर खड़े होने की तैयारी की। स्नेह लता ने बच्चे की देखभाल के साथ-साथ अपने बुजुर्ग के साथ ससुर की देखभाल की और साथ ही द्वितीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा के फार्म भरे। पर उसका भी ऐसा एक्सीडेंट हुआ की सारे सपने टूट गए।
परीक्षा देने जाने से पहले हुआ हादसा
दरअसल 29 अक्टूबर को जब वह अपने कुछ सहयोगियों के साथ कार से वर्ग 2 टीचर की परीक्षा देने के लिए जा रही थी, तो बूंदी टनल के नजदीक कार बेकाबू होकर पलट गई। स्नेह लता को कई दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा। उसके बाद वह घर लौटी। लेकिन 5 दिन पहले उसकी तबीयत फिर से बिगड़ गई। उसे अस्पताल में भर्ती कराया और गुरुवार तड़के उसकी मौत की खबर ने पूरे गांव को हिला कर रख दिया।
मासूम को पता तक नहीं, नहीं रहे माता-पिता
पहले पिता और उसके बाद मां की चिता को मुखाग्नि देने वाले शिवांग को यह नहीं पता कि अब उसके माता-पिता उसके साथ नहीं है । वह अपने बुजुर्ग दादा दादी के साथ रह रहा है और बार-बार अपनी मां के पास जाने की जिद कर रहा है। उसकी मासूम आंखें घर में मौजूद भीड़ में से अपनी मां को तलाशने की कोशिश कर रही है और बार-बार मां की फोटो पर जाकर अटक रही है, लेकिन उसे नहीं पता कि अब मां फोटो से बाहर निकलकर कभी नहीं आएगी।
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