
जयपुर. राजस्थान में विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही पूरी तरह से बिगुल बज चुका है। 1 साल में नरेंद्र मोदी की लगातार दो से तीन सभाएं और फिर राजस्थान में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का दौरा यह सभी बातें इस बात की ओर संकेत दे रही है कि चुनावों के 4 से 5 महीने पहले ही दोनों पार्टियां किसी भी हाल में नहीं चाहती कि वह किसी भी छोर पर कमजोर पड़े इसलिए राजस्थान में अभी से दोनों पार्टियों ने वोटर्स को लुभाना शुरू कर दिया है।
आलाकमान रिपोर्ट देखने के बाद फाइनल करेंगे टिकट
वहीं कांग्रेस पार्टी से एक बड़ी खबर सामने आ रही है। कांग्रेस पार्टी इस बार राजस्थान के विधानसभा चुनाव लड़ने वाले पार्टी सिंबल के कैंडिडेट्स की लिस्ट अक्टूबर के पहले सप्ताह में जारी कर सकती है। इसके लिए कांग्रेस पार्टी ने पर्यवेक्षक भी लगाएं हैं जो अलग-अलग जिले में जाकर कार्यकर्ताओं से बातचीत कर आलाकमान को रिपोर्ट करेंगे और उसके बाद आलाकमान टिकट वितरण पर फैसला लेगा। आपको बता दें कि राजस्थान में आचार संहिता भी अक्टूबर के पहले या दूसरे सप्ताह में लगने वाली है। ऐसे में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को अपने प्रचार के लिए करीब 2 महीने तक का समय मिल जाएगा वह भी पार्टी सिंबल के साथ।
कांग्रेस कर्नाटक की तर्ज पर राजस्थान में लड़ेगी चुनाव
वहीं राजनीतिक सूत्रों की मानें तो कांग्रेस पार्टी इस बार चुनाव में प्रचार में राष्ट्रीय मुद्दों की बजाय स्थानीय मुद्दों की बात करेगी। जिस तरह से उन्होंने कर्नाटक में किया जहां भाजपा कर्नाटक में राष्ट्रीय मुद्दों जैसे आतंकवाद आदि पर बात कर रही थी। तो वहीं कांग्रेस ने अपने स्थानीय मुद्दों पर बात करने के लिए जारी रखी और आखिरकार नतीजा निकला कि वहां कांग्रेस पार्टी ने अपनी सरकार बना ली।
6 महीने से प्रत्याशियों को टिकट देने के लिए हो रहा सर्वे
वही आपको बता दें कि राजस्थान में केवल पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट नहीं कांग्रेस पार्टी पिछले करीब 6 महीने से प्रत्याशियों को टिकट देने के लिए उनके बैकग्राउंड का सर्वे करवा रही है। ऐसे में टिकट वितरण में इसे सर्वे की रिपोर्ट को भी ध्यान में रखा जाएगा। यदि कोई प्रत्याशी जो पिछले विधानसभा चुनाव को पार्टी के सिंबल पर जीत चुका है लेकिन उसका ग्राउंड में प्रभाव कमजोर है तो उसे पार्टी टिकट देने से कतरा भी सकती है।
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