
जयपुर. यह मंदिर है राजस्थान की राजधानी जयपुर की पुरानी बस्ती में स्थित गोपीनाथ का। जो करीब 5000 साल पुराना है। मंदिर के मेहंदी सिद्धार्थ बताते हैं कि करीब 180 साल पहले एक अंग्रेज अफसर यहां आए जब उन्होंने इस मंदिर के बारे में सुना तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ। अंग्रेज अफसर ने कहा कि यदि मंदिर में लगी प्रतिमा में प्राण है तो इसकी नब्ज भी चलती ही होगी। इसे साबित करने के लिए वह एक पल्स वॉच यानि नब्ज से चलने वाली घड़ी लेकर आए और भगवान के हाथों में पहनाई।
घड़ी पहनाते ही चलने लगी नब्ज
हाथों में घड़ी पहनते ही वह चलने लगी। लेकिन एक बार वह घड़ी खराब हो गई तो उसे ठीक करवाने के लिए घड़ीसाज को दिया गया लेकिन उस घड़ीसाज ने वह घड़ी ठीक करके वापस नहीं दी और अपने पास प्रसाद समझ कर रख ली इसके बाद भगवान को बैटरी से चलने वाली घड़ी पहनी गई।
जिस शिला पर कंस ने पटके थे देवकी के 7 बच्चे...उसी से बनी यह प्रतिमा
वहीं मंदिर पुजारी का कहना है कि इस मंदिर में जो तीन प्रतिमाएं बनाई गई है वह उस शिला से बनी हुई है जिस पर देवकी के नवजात बच्चों को मारा गया। आज जन्माष्टमी के मौके पर इस मंदिर में भव्य आयोजन किया जा रहे हैं। सुबह से ही मंदिर में भजन और कीर्तन का दौर जारी है। शाम को भगवान श्री कृष्ण को पंजरी और पंचामृत का भोग लगाकर श्रद्धालुओं को वितरित किया जाएगा।
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