
बाड़मेर (राजस्थान). बाड़मेर जिले का बालेरा गांव इन दिनों उत्सव और उमंग के माहौल में सराबोर है। भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे इस छोटे से गांव में तीन दिवसीय बेटियों का सम्मेलन आयोजित किया गया है, जिसमें देशभर से लगभग तीन हजार बेटियां जुटी हैं। यह कार्यक्रम न केवल बालेरा की बेटियों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणादायक पहल साबित हो रहा है।
इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य बेटियों को उनके जड़ों से जोड़ना और पारिवारिक मूल्यों को संरक्षित करना है। गांव की गलियां इन दिनों बेटियों की चहल-पहल से गुलजार हैं। कार्यक्रम में पारंपरिक खेल, सांस्कृतिक प्रस्तुतियां, मेहंदी रस्म, और पारिवारिक वार्तालाप जैसी गतिविधियों ने सबका दिल जीत लिया है। इसके साथ ही "अपनी बोली, अपना परिधान" जैसे आयोजन से बेटियों को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से परिचित होने का मौका मिल रहा है।
सबसे खास बात यह है कि इस आयोजन ने बेटियों को अपनी चार से पांच पीढ़ियों से मिलने और उनसे जुड़ने का अनूठा अवसर प्रदान किया है। गांव की गलियों में दादी-नानी की कहानियां, बचपन की यादें, और भविष्य की योजनाएं साझा की जा रही हैं। यह कार्यक्रम सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि एक ऐसा मंच बन गया है जहां बेटियां अपनी जड़ों और मूल्यों को पहचान रही हैं।
कार्यक्रम में प्रेरणादायक सत्र और मोटिवेशनल सेमिनार भी आयोजित किए जा रहे हैं, जहां बेटियों को आत्मनिर्भर बनने और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने की प्रेरणा दी जा रही है। मंजू राजपुरोहित और ममता राजपुरोहित जैसी आयोजकों ने इस पहल को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई है। राजपुरोहित समाज की इस पहल ने यह साबित कर दिया है कि बेटियां केवल परिवार का गर्व ही नहीं, बल्कि समाज की सशक्त धुरी भी हैं। बालेरा का यह सम्मेलन न केवल एक सांस्कृतिक आयोजन है, बल्कि बेटियों के सशक्तिकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह पहल देशभर में एक नई मिसाल कायम करेगी।
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