
अजमेर (राजस्थान). अजमेर में 813वें ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स के अवसर पर पाकिस्तानी जायरीन का जत्था आने वाला है। भारत और पाकिस्तान के बीच 1974 में हुए तीर्थ यात्रा समझौते के तहत हर साल उर्स के दौरान पाकिस्तानी जायरीन दरगाह में जियारत और चादर चढ़ाने आते हैं। इस साल भी 6 और 7 जनवरी की रात में करीब 107 पाकिस्तानी जायरीन विशेष ट्रेन से अजमेर पहुंचेंगे। वे 10 जनवरी तक अजमेर में रुककर उर्स में भाग लेंगे।
जायरीन के ठहरने और अन्य सुविधाओं के लिए प्रशासन ने विशेष प्रबंध किए हैं। उन्हें केंद्रीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय, पुरानी मंडी में ठहराया जाएगा। यहां सोने के लिए कमरे, गर्म पानी और नमाज के लिए ओपन हॉल जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। प्रशासनिक अधिकारियों ने इन व्यवस्थाओं का निरीक्षण भी किया है।
जायरीन के भारत आगमन के 24 घंटे के भीतर उनका सी-फॉर्म ऑनलाइन सबमिट करना अनिवार्य होगा। वे वाघा बॉर्डर से भारत आएंगे और 7 जनवरी को सुबह 6:10 बजे दिल्ली से रवाना होकर दोपहर 1:00 बजे अजमेर पहुंचेंगे। उर्स के समापन के बाद, 10 जनवरी को वे पाकिस्तान लौट जाएंगे।
प्रशासन ने जायरीन की सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम किए हैं। उनके साथ हर समय एक पुलिसकर्मी और होमगार्ड जवान तैनात रहेगा। जायरीन को दरगाह जाने के लिए विशेष वाहन सुविधा दी जाएगी। हालांकि, वे अजमेर में खरीदारी या किसी अन्य व्यक्ति से मिलने के लिए स्वतंत्र नहीं होंगे।
अंजुमन सैयदजादगान के उर्स कन्वीनर सैयद हसन हाशमी ने बताया कि इस बार पाकिस्तानी जायरीन पहली बार उर्स के छठे दिन शामिल होंगे। 7 जनवरी को सुबह 11:00 बजे "छठी की फातिहा" शुरू होगी। हालांकि, इस बार जायरीन की संख्या कम है, लेकिन उनके स्वागत और देखभाल के लिए विशेष तैयारियां की गई हैं। ख्वाजा गरीब नवाज का उर्स भारत-पाकिस्तान के सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों का प्रतीक है, जो दोनों देशों के श्रद्धालुओं को जोड़ता है।
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