
जयपुर. राजस्थान सरकार ने सोमवार को एक बड़ा प्रशासनिक निर्णय लेते हुए राज्य के जिलों और संभागों के पुनर्गठन का गजट जारी किया। इस निर्णय के तहत 9 जिलों को समाप्त कर 12 जिलों और 3 संभागों का पुनर्गठन किया गया है। इसके पीछे उद्देश्य प्रशासनिक सुगमता और आर्थिक बचत को प्राथमिकता देना है। जिलों को कम करने के फैसले के बाद कांग्रेस पार्टी के तमाम बड़े नेता भारतीय जनता पार्टी को घेर रहे हैं। खुद भाजपा के लोग भी सरकार के खिलाफ हो रहे हैं , लेकिन सरकार ने एक फैसले से कांग्रेस को सबक सिखाने के साथ ही करोड़ों रुपए की बचत भी कर ली है।
सरकार की पड़ताल में पाया गया कि 9 जिलों को समाप्त करने से सालाना करीब 9 हजार करोड़ रुपये की बचत होने का अनुमान है। प्रत्येक जिले पर औसतन सालाना एक हजार करोड़ रुपये खर्च होते हैं। पुनर्गठन के बाद प्रशासनिक भार कम होगा और इन जिलों में जिला स्तरीय सुविधाएं अन्य विकल्पों से प्रदान की जाएंगी। खुद अशोक गहलोत ने जिलों का गठन करते समय कहा था कि हर जिले को पूरी तरह से सुव्यवस्थित करने में करीब 2000 करोड रुपए का अतिरिक्त भार आ सकता है।
पुनर्गठन का मुख्य उद्देश्य प्रशासनिक सुधार और विकास की रफ्तार तेज करना है। अधिकारियों का कहना है कि इन जिलों में अतिरिक्त जिला कलक्टर और पुलिस अधीक्षक कार्यालय खोलकर स्थानीय प्रशासन को मजबूत किया जाएगा। इससे न केवल संसाधनों की बचत होगी, बल्कि आम जनता को भी सुगम सेवाएं मिलेंगी। राजस्थान का यह निर्णय प्रशासनिक दक्षता और विकास को प्राथमिकता देने की दिशा में एक साहसिक कदम है।
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