सार

अजमेर शरीफ दरगाह में 8 साल की उम्र से तोप चलाने वाली फौजिया की कहानी, जो परिवार का गुजारा चलाने के लिए यह अनोखा काम करती है। जानिए इस अनसुनी परंपरा और फौजिया के संघर्ष के बारे में।

अजमेर. परिवार के गुजारे के लिए आप , हम और लगभग सभी लोग कुछ ना कुछ काम करते हैं।‌ कोई ऑफिस जाता है , कोई सवेरे दुकान खोलता है कोई अन्य काम करता है । लेकिन क्या कभी सुना है परिवार का पेट पालने के लिए कोई तोप चलाता है ? आपने सही पढ़ा है परिवार का गुजर बसर करने के लिए एक लड़की तोप चलाती है और यह काम वह 8 साल की थी, जब से कर रही है।

अजमेर में सबसे खास है तोप दागने की परंपरा

दरअसल राजस्थान के अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, जिसे अजमेर शरीफ दरगाह के नाम से जाना जाता है, न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि कई अनूठी परंपराओं का संगम भी है। यहां हर साल लाखों जायरीन देश-विदेश से आते हैं और दरगाह की रस्मों में भाग लेते हैं। इन रस्मों में सबसे खास है तोप दागने की परंपरा, जो यहां सदियों से निभाई जा रही है।

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8 साल की उम्र से तोप दाग रही है फौजिया

इस परंपरा को निभाने वाली फौजिया, एक ऐसी महिला हैं जो अपने साहस और निष्ठा के कारण इस काम को बखूबी निभा रही हैं। फौजिया ने महज 8 साल की उम्र में तोप दागने का काम शुरू किया था। यह काम उन्हें उनके परिवार की पुश्तैनी धरोहर के रूप में मिला है। उनके दादा और पिता भी इसी परंपरा से जुड़े रहे हैं।

मुगल बादशाह अकबर के समय से चली आ रही यह परंपरा

फौजिया बताती हैं कि यह परंपरा मुगल बादशाह अकबर के समय से चली आ रही है। दरगाह में होने वाले महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजनों, जैसे कि उर्स और रमज़ान, के दौरान तोप दागने का कार्य किया जाता है। इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य इन पवित्र मौकों का आगाज करना और धार्मिक भावनाओं को और प्रबल बनाना है।

झंडे की रस्म के दौरान दी जाती है 25 तोपों की सलामी

तोप दागने की प्रक्रिया पूरी तरह से सीआई (सुरक्षा निरीक्षक) की निगरानी में होती है। झंडे की रस्म के दौरान 25 तोपों की सलामी दी जाती है। रमज़ान के पवित्र महीने में सेहरी के समय और उसके समाप्त होने पर एक-एक बार तोप दागी जाती है। इसके अलावा, जुम्मे की नमाज पर चार बार और अन्य विशेष अवसरों पर भी तोप की सलामी दी जाती है।

फौजिया महिलाओं के लिए साहस और समर्पण की मिसाल

फौजिया को इस परंपरा के लिए 3000 रुपए महंताना और 5000 रुपए मेडिकल भत्ता मिलता है। बारूद का खर्चा अलग से वहन किया जाता है। इसके अलावा, अपने परिवार के गुजारे के लिए उन्होंने घर में फूलों की दुकान लगा रखी है। अजमेर दरगाह की यह अनोखी परंपरा न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि फौजिया जैसी महिलाओं के साहस और समर्पण की मिसाल भी है।

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