1 की नहीं आंखे, कोई कमर के नीचे से कमजोर, राजस्थान के 3 जुझारू शिक्षकों की Story

शिक्षक दिवस के अवसर पर जयपुर से तीन प्रेरणादायक शिक्षकों की कहानी, जो शारीरिक अक्षमता के बावजूद बच्चों को शिक्षित करने के लिए समर्पित हैं।

sourav kumar | Published : Sep 5, 2024 5:57 AM IST

शिक्षक दिवस की प्रेरणादायक कहानी। शिक्षक दिवस पर जब हम शिक्षकों को सम्मानित करते हैं तो हम अक्सर उन शिक्षकों को याद करते हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा और मेहनत से शिक्षा के क्षेत्र में नई ऊंचाइयां छूते हैं। लेकिन कुछ ऐसे टीचर भी हैं जो अपनी शारीरिक कमजोरियों के बावजूद बच्चों को ज्ञान का प्रकाश देने में लगे हुए हैं। ऐसे लोगों की दृढ़ इच्छाशक्ति और समर्पण भावना वाकई प्रेरणादायी है। राजधानी जयपुर में रहने वाले ऐसे ही तीन शिक्षक हैं, जो करीब पचास फीसदी से भी ज्यादा तक विकलांग हैं, लेकिन हर रोज शिक्षा की अलख जगा रहे हैं।

जयपुर के शिक्षक विजय कुमावत की कहानी

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जयपुर  बैनाड़ रोड स्थित श्याम नगर के विजय कुमावत दोनों पैरों से अक्षम होने के बावजूद बैसाखी के सहारे स्कूल जाते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं। उनके दोनों ही पैर पूरी तरह से काम नहीं करते हैं। वे जमवारामगढ़ राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेवालों का ढाणी में पढ़ाते हैं। जब स्कूल में छुट्टी होती है सिर्फ उस दिन विजय काम नहीं करते हैं। वरना बाकी दिन कोई लिव नहीं होती हैं। उनका स्कूल क्लास 5 तक का है और हर साल स्कूल का परिणाम सौ फीसदी रहता है। उनका कहना है कि साथी शिक्षक और बच्चे मेरा परिवार हैं। ये सभी एक फैमिली की  तरह ही मेरा ध्यान रखते हैं।

(विजय कुमावत)

गणित और विज्ञान पढ़ाने वाले नवीन रावत

जमवारामगढ़ के राजकीय उच्च प्राथमिक बुद्धसिंहपुरा सांगानेर शहर स्कूल में गणित और विज्ञान पढ़ाने वाले नवीन रावत का कमर से नीचे का हिस्सा काम नहीं करता, फिर भी वे व्हीलचेयर पर बैठकर बच्चों को पढ़ाते हैं। घर से स्कूल आने में उनकी पत्नी उनकी मदद करती हैं। सब कुछ मैनेज करने के साथ ही व्हील चेयर लेकर पति को स्कूल जाती है। उसके बाद स्कूल में स्टाफ एक परिवार की तरह नवीन का ध्यान रखता है। बच्चे अपने गुरुजी की हर छोटे - बड़े काम में मदद करते हैं। गणित और विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षक नवीन के अधिकतर छात्र अच्छे नंबर लाते हैं।

(नवीन रावत)

दृष्टिहीन होने के बावजूद 15 km जाते हैं स्कूल

जयपुर के परकोटा के धर्मेन्द्र पारीक दृष्टिहीन होने के बावजूद 15 किमी दूर स्कूल जाकर बच्चों को राजनीतिक विज्ञान पढ़ाते हैं। वे भी सरकारी विद्यालय में पढ़ाते हैं। पढ़ाने की स्टाइल अलग है। किसी भी बच्चे को खड़ा कर पाठ पढ़वाते हैं और उसके बाद उसे अपने शब्दों में बच्चों को सिखाते हैं। एक बार में ही बच्चे पाठ समझ लेते हैं । उसके बाद होमवर्क भी दिया जाता है और क्लास मॉनीटर की मदद से उसे चेक भी किया जाता है।

(धर्मेन्द्र पारीक)

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