हाईवे से 150 फीट दूर शिफ्ट किया गया हनुमान मंदिर, 7 महीने बाद 'अली' की जमीन पर विराजे बजरंगबली

यूपी के जिले शाहजहांपुर में नेशनल हाईवे से 150 फीट की दूरी पर बजरंगबली विराजमान हो गए है। दरअसल इसके लिए बाबू अली ने अपनी एक बीघा की जमीन दान में दी थी और सात महीने के बाद मंदिर को शिफ्ट किए जाने का काम पूरा हो गया है।

शाहजहांपुर: उत्तर प्रदेश के जिले शाहजहांपुर के तिलहर में लखनऊ-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण में बाधक बन रहे कछियानी खेड़ा हनुमान मंदिर को पीछे खिसकाने का काम करीब सात महीने बाद पूरा हो गया है। दरअसल मंदिर को राष्ट्रीय राजमार्ग से 150 फीट पीछे स्थापित कर दिया गया है। इतना ही नहीं मंदिर के पुराने पीपल के पेड़ को भी नवीन मंदिर परिसर में पुनर्रोपित कर दिया गया है। बता दें कि पिछले साल अक्टूबर में मंदिर को पीछे खिसकाने का काम शुरू हुआ था। जिसको लेकर हरियाणा की जय दुर्गा हाउस लिफ्टिंग एंड शिफ्टिंग कंपनी को इसका ठेका दिया गया था।

सात महीने में पूरा हुआ मंदिर का पूरा काम

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हरियाणा की जय दुर्गा हाउस लिफ्टिंग एंड शिफ्टिंग कंपनी ने मंदिर के नीचे फाउंडेशन बनाकर उसे लोहे के चैनल से जकड़ा और फिर जैक लगाकर मंदिर को पीछे ले जाने की प्रक्रिया शुरू की। मंदिर बनने के शुरुआती समय में कहा जा रहा था कि दो-तीन महीने में मंदिर शिफ्ट हो जाएगा लेकिन इसको करने में पूरे सात महीने लग गए और अब जाकर काम पूरा हो सका है। मंदिर के लिए एक बीघा जमीन बाबू अली ने दान में दी थी, तब जाकर हनुमान मंदिर स्थापित किया गया। बाबू अली द्वारा दी गई जमीन देकर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश कर दी है। वहीं कर्मचारी अर्जुन सिंह का कहना है कि मंदिर के नीचे फाउंडेशन बनाने के बाद जैक धीरे-धीरे हटाए जाएंगे।

विरोध को देखते हुए प्रशासन ने लिया था फैसला

आपको बता दें कि मंदिर परिसर में विशाल पीपल का वृक्ष था। इसको दिल्ली की रोहित नर्सरी के कर्मचारी पिछले महीने से कांट-छांट में लगे थे। उसके बाद पेड़ को हाइड्रा मशीन से सोमवार शाम मंदिर के नवीन परिसर के पास शिफ्ट कर दिया गया। वहीं पुजारी लखन गिरि का कहना है कि मंदिर से हजारों लोगों की आस्था जुड़ी है। प्रशासन के निर्देश पर शिफ्टिंग का कार्य किया गया है। जब नेशनल हाईवे के चौड़ीकरण के लिए हनुमान मंदिर को हटाने के लिए आदेश जारी हुआ था तो स्थानीय लोगों ने इसका काफी विरोध किया था। इसके अलावा हिंदू संगठनों ने भी विरोध किया था। इसी कारणवश एनएचएआई और प्रशासन ने मंदिर को मशीन के जरिए शिफ्ट किए जाने का फैसला किया और सात महीने में यह कार्य सफलतापूर्वक पूरा हो गया।

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