जो योजनाएं गरीबों की जिंदगी बदलने के लिए बनीं, वहीं कुछ अफसरों ने उन्हें अपनी जेब भरने का जरिया बना लिया। लेकिन अब सीएम योगी के ‘जीरो टॉलरेंस’ फॉर्मूले के आगे भ्रष्टाचार के ये किले ढहने लगे हैं। समाज कल्याण विभाग में सालों से दबे घोटालों की फाइलें खुलीं तो करोड़ों की हेराफेरी का खेल सामने आया। मुख्यमंत्री के आदेश पर बड़े पैमाने पर बर्खास्तगी, वसूली और एफआईआर की तैयारी चल रही है।
इन कार्रवाइयों ने उन फाइलों की धूल झाड़ी है, जिनमें करोड़ों रुपये के गबन के निशान दर्ज थे। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने इन बर्खास्तगियों को मंजूरी दे दी है, जबकि विभाग ने सभी दोषी अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं। समाज कल्याण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण ने कहा कि सीएम योगी के नेतृत्व में “भ्रष्टाचार पर निरंतर प्रहार जारी रहेगा” और अब दबी हुई फाइलों में भी न्याय सुनिश्चित किया जाएगा।
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जांच में सामने आया कि अधिकारियों ने छात्रवृत्ति, शुल्क प्रतिपूर्ति, पेंशन योजनाओं और गरीब कल्याण स्कीमों में भारी फर्जीवाड़ा किया। फर्जी नाम, झूठे खाते और गैर-मौजूद संस्थान बनाकर सरकारी धन को अपने खातों में पहुंचाया गया। कुल 27 करोड़ रुपये से अधिक की अनियमितताएं सामने आई हैं, जिनकी वसूली के आदेश दिए गए हैं।
इन मामलों ने यह साबित कर दिया है कि योगी सरकार केवल दिखावे की नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई की राजनीति कर रही है। मंत्री असीम अरुण ने कहा, “जो फाइलें अब तक दबी हुई थीं, उन्हें भी खोला जा रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ यह लड़ाई अब बिना ब्रेक चलेगी।”
प्रशासनिक विशेषज्ञों का कहना है कि समाज कल्याण विभाग की फाइलों से पुरानी गड़बड़ियों को उजागर करना पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम है। इससे साफ संदेश गया है कि योगी सरकार के शासन में भ्रष्टाचार चाहे कितना भी पुराना क्यों न हो, अब बचना मुश्किल है।
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