Mangal Pradosh 2022: 29 मार्च को द्विपुष्कर योग में करें मंगल प्रदोष की पूजा, मिलेगा दोगुना फायदा

इस बार 29 मार्च, मंगलवार को चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि होने से इस दिन प्रदोष व्रत किया जाएगा। ये तिथि मंगलवार को होने से ये मंगल प्रदोष (Mangal Pradosh 2022) कहलाएगा। धर्म ग्रंथों में इस व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से की जाती है।

Asianet News Hindi | / Updated: Mar 29 2022, 06:00 AM IST

उज्जैन. ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, इस बार प्रदोष व्रत पर द्विपुष्कर योग (Dwipushkar Yoga) का शुभ संयोग बन रहा है। द्विपुष्कर योग के चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है। इस दिन व्रत करने वाले को दिनभर बिना कुछ खाए व्रत रखना होता है और शाम को भगवान शिव की पूजा करने के बाद ही वो फलाहार खा सकता है। आगे जानिए इस व्रत की विधि और अन्य खास बातें...

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ये है मंगल प्रदोष का शुभ मुहूर्त व द्विपुष्कर योग का महत्व (Mangal Pradosh Ka Shubh Muhurat)
चैत्र कृष्ण त्रयोदशी तिथि 29 मार्च को दोपहर 02:38 से शुरू होगी, जो 30 मार्च को दोपहर 01:19 पर समाप्त होगी। भौम प्रदोष के दिन पूजा मुहूर्त शाम 06:37 से रात 08:57 तक रहेगा। इस दिन द्विपुष्कर योग का संयोग बन रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार द्विपुष्कर योग में की पूजा-व्रत और उपाय से दोगुना फायदा मिलता है। इसलिए इसका नाम द्विपुष्कर रखा गया है। इस योग विशेष महत्व ज्योतिष ग्रंथों में बताया गया है।

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इस विधि से करें मंगल प्रदोष की पूजा (Mangal Pradosh Puja Vidhi)
- मंगल प्रदोष की सुबह पूजा स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। फिर पूजा के लिए भगवान शिव की तस्वीर या प्रतिमा एक चौकी पर स्थापित कर दें। इसके बाद गंगा जल से शिवजी का अभिषेक करें। 
- अब भांग, धतूरा, सफेद चंदन, फल, फूल, अक्षत (चावल) गाय का दूध, धूप आदि चढ़ाएं। इस दौरान ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। प्रदोष काल यानी शाम को फिर से स्नान करके इसी विधि से पुन: शिवजी की पूजा करें। घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। 
- आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। इसके बाद शिवजी की आरती करें। रात में जागरण करें और शिवजी के मंत्रों का जाप करें। इस तरह व्रत व पूजा करने से व्रती (व्रत करने वाला) की हर इच्छा पूरी हो सकती है।

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ये है मंगल प्रदोष व्रत की कथा (Mangal Pradosh Katha)
किसी गांव में गरीब ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रहती थी। वह रोज अपने बेटे के साथ भीख मांगने जाती थी। एक दिन उसे रास्ते में विदर्भ का राजकुमार मिला जो घायल अवस्था में था। उस राजकुमार को पड़ोसी राज्य ने आक्रमण कर उसका राज्य हड़प लिया और उसे बीमार बना दिया था। ब्राह्मणी उसे घर ले आई और उसकी सेवा करने लगी। सेवा से वह राजकुमार ठीक हो गया और उसकी शादी एक गंधर्व पुत्री से हो गयी। गंधर्व की सहायता से राजकुमार ने अपना राज्य मिल गया। इसके बाद राजकुमार ने ब्राह्मण के बेटे को अपना मंत्री बना लिया। इस तरह प्रदोष व्रत के फल से न केवल ब्राह्मणी के दिन सुधर गए बल्कि राजकुमार को भी उसका खोया राज्य वापस मिल गया।  
 

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