पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे CM योगी, जानिए उनका पूरा पॉलिटिकल करियर

यूपी के सीएम योगी ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत गोरखपुर से ही की थी,  लेकिन 2022 के चुनावी रण में उतरना योगी के लिए एक नया अनुभव होगा। सीएम योगी पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं। आइए, उनके राजनीतिक कैरियर से जुड़ी कुछ अहम बाते जानते हैं कि कैसे एक महंत से उन्होंने सांसद और फिर मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया।

Asianet News Hindi | Published : Jan 15, 2022 9:38 AM IST / Updated: Jan 15 2022, 04:17 PM IST

लखनऊ: शनिवार को यूपी विधानसभा चुनाव (UP Vidhansabha chunav 2022) के लिए प्रत्याशियों के नामों की पहली सूची जारी कर दी गई। 107 प्रत्याशियों की उस सूची में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi adityanath) के लिए उनके अपने गढ़ गोरखपुर से सीट फाइनल की गई है। आपको बता दें कि यूपी के सीएम योगी ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत गोरखपुर से ही की थी,  लेकिन 2022 के चुनावी रण में उतरना योगी के लिए एक नया अनुभव होगा। सीएम योगी पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं। आइए, उनके राजनीतिक कैरियर से जुड़ी कुछ अहम बाते जानते हैं कि कैसे एक महंत से उन्होंने सांसद और फिर मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया।


26 वर्ष की उम्र में पहुंचे थे लोकसभा, 5 बार रहे सांसद 
90 के दशक में राममंदिर आंदोलन के दौरान ही योगी आदित्यनाथ की मुलाकात गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक कार्यक्रम में हुई। इसके कुछ दिनों बाद योगी अपने माता-पिता को बिना बताए गोरखपुर जा पहुंचे और जहां संन्यास धारण करने का निश्चय लेते हुए गुरु दीक्षा ले ली। महंत अवैद्यनाथ भी उत्तराखंड के रहने वाले थे।  जिन्होंने अजय सिंह बिष्ट को योगी आदित्यनाथ बनाने का काम किया। गोरखनाथ मंदिर के महंत की गद्दी का उत्तराधिकारी बनाने के चार साल बाद ही महंत अवैद्यनाथ ने योगी आदित्यनाथ को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बना दिया।  गोरखपुर से महंत अवैद्यनाथ चार बार सांसद रहे, उसी सीट से योगी 1998 में 26 वर्ष की उम्र में लोकसभा पहुंचे और फिर लगातार 2017 तक पांच बार सांसद रहे। 

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गोरखपुर में हावी रहा रहा योगी का हिंदुत्व कार्ड 
सियासत में कदम रखने के बाद योगी आदित्यनाथ की छवि एक कठोर हिंदुत्ववादी नेता के तौर पर उभरी। सांसद रहते हुए गोरखपुर जिले को अपने नियम अनुसार चलाने और त्वरित फैसलों से सबको चकित किया। इसी के चलते योगी के सियासी दुर्ग को न तो मुलायम सिंह का समाजवादी भेद पाया और न ही मायावती की सोशल इंजीनियरिंग काम आई। गोरखपुर में योगी का हिंदुत्व कार्ड ही हावी रहा।

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