Exclusive: क्या आपको पता है अयोध्या में बन रहे श्री राम मंदिर निर्माण की 2 सबसे बड़ी खासियत?

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बन रहा है। राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेन्द्र मिश्रा के मुताबिक, दिसंबर 2023 तक गर्भगृह का काम पूरा हो जाएगा। वहीं मंदिर परिसर के बाकी काम को 2024 के आखिर तक पूरा करने का लक्ष्य है। 

Asianet News Hindi | Published : May 1, 2022 3:47 PM IST / Updated: May 05 2022, 08:50 AM IST

नई दिल्ली। रामलला का बहुप्रतीक्षित भव्य मंदिर अयोध्या (Ayodhya) में बन रहा है। इस मंदिर (Ram Mandir) के लिए भारत सरकार द्वारा एक ट्रस्ट गठित किया गया है, जिसका नाम श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट है। यह ट्रस्ट मंदिर निर्माण से जुड़े हर फैसले लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है। इसके अलावा अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की सबसे महत्वूपर्ण जिम्मेदार पूर्व आईएसएस नृपेन्द्र मिश्रा को सौंपी गई है। उन्हें राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। एशियानेट न्यूज (Asianet News) के राजेश कालरा ने हाल ही में मंदिर निर्माण के कामकाज का जायजा लिया। इस दौरान उन्होंने नृपेन्द्र मिश्रा से बातचीत की, जिसमें उन्होंने मंदिर निर्माण से जुड़ी एक ऐसी बात बताई जो हैरान करने वाली थी। 

बिना लोहे के तैयार हो रहा मंदिर : 
नृपेन्द्र मिश्रा के मुताबिक, अयोध्या के राम मंदिर निर्माण में कहीं भी लोहा इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। लोहा क्यों नहीं होगा, इसके उन्होंने दो कारण बताए। पहला ये कि किसी भी प्राचीन मंदिर के निर्माण में लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया। लेकिन सही बात ये है कि लोहा इसलिए इस्तेमाल नहीं किया गया, क्योंकि तब वो बना ही नहीं था। पुराने जमाने में लोहा और सीमेंट तो बने ही नहीं थे, चूने की मिट्टी बनती थी। तो इस तरह राम मंदिर को भी प्राचीन काल के मंदिरों की तरह ही हम बिना लोहे का बना रहे हैं। यही वजह है कि मंदिर का फाउंडेशन कंक्रीट सीमेंट का बनाया गया है और हम इसे कॉम्पेक्टेड सीमेंट स्ट्रक्चर (CCR) कहते हैं। 

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कॉम्पेक्टेड सीमेंट स्ट्रक्चर का इस्तेमाल : 
यह CCR स्ट्रक्चर करीब 6 मीटर (18 फीट) चौड़ा है। इसको पूरा करने में हमें काफी कठिनाई हुई, क्योंकि इसका जो मटेरियल था वो झांसी के पास से हमें लाना पड़ा। इस मटेरियल को एग्रीगेट कहते हैं। इसे यूं समझ लीजिए कि पत्थरों के जो छोटे कंकड़ होते हैं, उसे एक स्पेशल मिक्स में डालकर बैचिंग प्लांट में मिक्स करने के बाद यहां फाउंडेशन में डालना था। इसके बाद उसे कॉम्पैक्ट करना था। इसके बाद मंदिर का प्लिंथ स्ट्रक्चर तैयार हुआ। 

मंदिर निर्माण में इस्तेमाल हुआ सबसे मजबूत ग्रेनाइट पत्थर : 
नृपेन्द्र मिश्रा के मुताबिक, प्लिंथ स्ट्रक्चर (चबूतरा) साढ़े 5 मीटर का है। अब सवाल ये था कि ये किसका बने? कई एक्सपर्ट से बात करने पर पता चला कि सबसे मजबूत पत्थर ग्रेनाइट है। इसके लिए हमें कर्नाटक से ग्रेनाइट के 17 हजार स्लैब मंगाने पड़े। इतनी बड़ी मात्रा में साउथ से यहां तक स्लैब लाने के लिए ट्रक नहीं मिल रहे थे। बाद में हमें कंटेनर कार्पोरेशन से मदद मिली और उन्होंने स्पेशल अरेंजमेंट करते हुए कनार्टक से कानपुर तक सिर्फ 3 दिनों में स्लैब पहुंचा दिए। बाद में कानपुर से अयोध्या तक इन स्लैब को ट्रेलर में लाया गया। 

कौन हैं नृपेन्द्र मिश्रा : 
नृपेन्द्र मिश्रा यूपी काडर के 1967 बैच के रिटायर्ड आईएएस अफसर हैं। मूलत: यूपी के देवरिया के रहने वाले नृपेन्द्र मिश्रा की छवि ईमानदार और तेज तर्रार अफसर की रही है। नृपेंद्र मिश्रा प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव भी रह चुके हैं। इसके पहले भी वो अलग-अलग मंत्रालयों में कई महत्वपूर्ण पद संभाल चुके हैं। मिश्रा यूपी के मुख्य सचिव भी रह चुके हैं। इसके अलावा वो यूपीए सरकार के दौरान ट्राई के चेयरमैन भी थे। जब नृपेंद्र मिश्रा ट्राई के चेयरमैन पद से रिटायर हुए तो पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन (PIF) से जुड़ गए। बाद में राम मंदिर का फैसला आने के बाद सरकार ने उन्हे अहम जिम्मेदारी सौंपते हुए राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाया। 

जानें कब आया राम मंदिर का फैसला और कब बना ट्रस्ट : 
सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर, 2019 को अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक मानते हुए फैसला मंदिर के पक्ष में सुनाया। इसके साथ ही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की विशेष बेंच ने राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए अलग से ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया। इसके बाद 5 फरवरी, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में ट्रस्ट के गठन का ऐलान किया। इस ट्रस्ट का नाम 'श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' रखा गया। 

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