11 साल के बेटे के इलाज के लिए सीतापुर से लखनऊ तक नंगे पैर दौड़ता रहा पिता, जानें क्या बोले जिम्मेदार

यूपी के सीतापुर से अपने 11 माह के बेटे का इलाज करवाने आए एक पिता को केजीएमयू में इधर से उधर भटकना पड़ा। लेकिन यूपी के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान में उन्हें सिर्फ निराशा हाथ लगी। वहीं इस मामले पर जिम्मेदारों ने भी सफाई पेश की है।

Asianet News Hindi | Published : Sep 19, 2022 6:28 AM IST / Updated: Sep 19 2022, 05:00 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहालियों की तस्वीरें अक्सर सुर्खियों में बनी रहती हैं। यूपी के डिप्टी सीएम बृजेश पाठक अक्सर यह कहते हुए सुनाई देते हैं कि मरीजों के इलाज में कोई लापरवाही ना बरती जाए। इसके बावजूद भी कई स्वास्थ्य व्यवस्था में हो रही लापरवाहियों के चलते कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ जाता है। इसी क्रम में ऐसा ही एक मामला यूपी के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान से सामने आया है। इस तस्वीर को देख आपका दिल दहल जाएगा। जहां पर एक बेबस पिता अपने 11 माह के बच्चे के इलाज के लिए दर-दर पर भटकता दिखाई दे रहा है।

KGMU में नहीं मिला मासूम को इलाज
इस बेबस पिता के हाथ में जहां 11 माह का एक मासूम है तो वहीं पिता के पैरों में चप्पल भी नहीं हैं। उसके इलाज के लिए वह केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर के कैजुअल्टी से लेकर बाल रोग विभाग तक चक्कर लगाता है। हर जगह उन्हें एक ही जवाब दिया जा रहा है कि बेड नहीं है। बच्चे को वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत है। लोहिया संस्थान या दूसरी जगह ले जाओ। इस तरह से वह पिता अपने बेटे की जान बचाने के लिए इशारों पर नाचता दिख रहा है। बताया जा रहा है कि इसके बाद वह व्यक्ति किसी दलाल के हत्थे चढ़ गया। दलाल के कहने पर 11 माह के मासूम का इलाज करवाने के लिए किसी प्राइवेट अस्पताल में ले जाया गया। 

जानिए क्या बोले जिम्मेदार
सीतापुर रेउसा ब्लॉक निवासी रजित राम कश्यप के बेटे को आंतरिक रक्तस्राव हो रहा था। इससे पहले उन्होंने बेटे को सीतापुर के भी एक प्राइवेट अस्पताल में दिखवाया था। वहां के डॉक्टरों ने बच्चे की हालत गंभीर होने पर उसे ऑक्सीजन का सपोर्ट देने के बाद केजीएमयू रेफर कर दिया था। लेकिन रजित राम को क्या मालूम था कि यूपी के इतने बड़े अस्पताल में भी उनके बेटे को इलाज नहीं मिल पाएगा। वहीं इस मामले पर ट्रॉमा सेंटर के सीएमएस डॉ. संदीप ने सफाई देते हुए कहा कि ऐसा संभव नहीं है कि बच्चे को प्राथमिक इलाज न दिया गया हो। वहीं साथ ही में वह यह बी कहते नजर आए कि ट्रॉमा में मरीजों का बहुत लोड है। हमेशा बेड-वेंटिलेटर फुल रहते हैं।

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