महाराष्ट्र ही नहीं UP में भी हो चुका है ऐसा, 20 साल पहले फडणवीस की तरह मुलायम ने रातों रात बना ली थी सरकार

महाराष्ट्र में सत्ता को लेकर पिछले 30 दिन से चल रहा ड्रामा शनिवार को खत्म हो गया। कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना मिलकर सरकार बनाएंगे, लेकिन बीजेपी ने सभी के दांव फेल कर दिए। शनिवार सुबह बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और एनसीपी के अजित पवार ने डिप्टी सीएम की शपथ ली।

लखनऊ (Uttar Pradesh). महाराष्ट्र में सत्ता को लेकर पिछले 30 दिन से चल रहा ड्रामा शनिवार को खत्म हो गया। कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना मिलकर सरकार बनाएंगे, लेकिन बीजेपी ने सभी के दांव फेल कर दिए। शनिवार सुबह बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस ने सीएम और एनसीपी के अजित पवार ने डिप्टी सीएम की शपथ ली। हालांकि, शरद पवार का कहना है कि उन्हें अजित पवार के इस फैसले की कोई जानकारी नहीं थी। आपको बता दें, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। यूपी की राजनीति में भी एक बार ऐसा हो चुका है। 

जब अजित सिंह का नाम सीएम के लिए हो चुका था फाइनल
1989 के विधानसभा चुनाव में जनता दल की जीत के बाद अजित सिंह सीएम घोषित हो चुके थे, लेकिन इसी बीच सत्ता का दांव खेलते हुए मुलायम सिंह यादव ने सीएम के रूप में शपथ ले ली। हुआ कुछ ऐसा था, 80 के दशक में जनता पार्टी, जन मोर्चा, लोकदल अ और लोकदल ब ने मिलकर जनता दल बनाया। चार दलों ने मिलकर यूपी में 208 सीटों पर जीत हासिल की। सरकार बनाने के लिए 14 और विधायकों की जरुरत थी। 

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CM पद के दो थे दावेदार
सीएम पद के 2 उम्मीदवार थे। एक लोकदल ब के नेता मुलायम सिंह यादव और दूसरे अजित सिंह। काफी माथापच्ची के बाद अजित सिंह का नाम सीएम के लिए तय हुआ। उस समय केंद्र में भी जनता दल की सरकार बनी थी। विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री बन चुके थे। यूपी में पार्टी की जीत के साथ ही उन्होंने घोषणा की थी कि अजित सिंह सीएम होंगे और मुलायम सिंह यादव डिप्टी सीएम। लखनऊ में ताजपोशी की तैयारियां चल रही थीं।

मुलायम ने खेला था आखिरी दांव, बन गए थे सीएम 
एक ओर जहां तैयारियां चल रही थी, वहीं दूसरी ओर मुलायम ने डिप्टी सीएम का पद ठुकराकर सीएम पद के लिए दावेदारी पेश कर दी। तब प्रधानमंत्री वीपी सिंह के आदेश मधु दंडवते, मुफ्ती मोहम्मद सईद और चिमन भाई पटेल बतौर पर्यवेक्षक लखनऊ आए। सभी ने मुलायम को डिप्टी सीएम का पद स्वीकार करने की सलाह दी, लेकिन वो नहीं मानें। जिसके बाद पीएम वीपी सिंह ने सीएम पद का फैसला लोकतांत्रिक तरीके से गुप्त मतदान के जरिये कराने का निर्णय लिया। इस बीच मुलायम ने बाहुबली डीपी यादव और बेनी प्रसाद वर्मा की मदद से अजीत के खेमे के 11 विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया। विधानसभा में मतदान हुआ और अजित सिंह सिर्फ 5 वोट से हार गए। 5 दिसंबर 1989 को मुलायम ने पहली बार सीएम पद की शपथ ली।

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