Special Report: दूसरी लहर के बाद BHU के अध्ययन में हुआ खुलासा, कोविड टीका लगवाने से लोगों को हो रही हिचकिचाहट

वैज्ञानिकों ने पिछले अध्ययन में देखा था की भारत में कोविड -19 की दूसरी लहर मुख्य रूप से अल्फा और डेल्टा वेरिएंट द्वारा संचालित थी। लेकिन जनमानस में, इस विनाशकारी लहर के दौरान सामान्य आबादी के व्यवहार का अध्ययन नहीं किया गया था।

Asianet News Hindi | Published : Oct 11, 2022 12:10 PM IST / Updated: Oct 11 2022, 05:52 PM IST

अनुज तिवारी 
वाराणसी:
16 जनवरी 2021 को भारत सरकार द्वारा कोरोना वायरस के खिलाफ दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन अभियान की शुरुआत के साथ ही, भारत ने 2021 के अंत तक अपनी पूरी आबादी का टीकाकरण करने का लक्ष्य रखा था। हालांकि, यह लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। इसी कारण का पता लगाने के लिए भारत के चार विश्वविद्यालयों के 17 वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में एक व्यापक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन से पता चला है कि वाराणसी और आसपास के जिलों की 15% आबादी वैक्सीन हेसिटेन्ट है। इस मल्टी डीसीप्लैनरी शोध टीम में मानवविज्ञानी, आनुवंशिकी विद, डॉक्टर और सामाजिक वैज्ञानिक शामिल थे। इस शोध कार्य में विभिन्न सामाजिक आर्थिक स्तरों के शहरी और ग्रामीण लोगों का सर्वेक्षण किया गया। टीम ने सामुदायिक स्वास्थ्य और आशा कार्यकर्ताओं से भी डेटा एकत्र किया और विभिन्न सांख्यिकीय मॉडलों के साथ उसका विश्लेषण किया। यह अध्ययन इस सप्ताह फ्रंटियर्स ऑफ पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन जून 2021 से दिसंबर 2021 के बीच किया गया। 

ऑनलाइन और ऑफलाइन किया जा रहा सर्वेक्षण 
वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले अध्ययन में देखा था की भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर मुख्य रूप से अल्फा और डेल्टा वेरिएंट द्वारा संचालित थी लेकिन जनमानस में इस विनाशकारी लहर के दौरान सामान्य आबादी के व्यवहार का अध्ययन नहीं किया गया था। इस प्रकार अब हमारी टीम ने इस अध्ययन में हजारों लोगों का वैक्सीन के प्रति व्यवहार का वैज्ञानिक तरीके से सर्वेक्षण किया। यह बात जूलॉजी विभाग बीएचयू के जीन वैज्ञानिक प्रो ज्ञानेश्वर चौबे ने कही। न्यूरोलॉजी विभाग बीएचयू के प्रमुख प्रोफेसर वीएन मिश्रा ने बताया कि एक समाज में वैक्सीन हेसिटेन्सी की उपस्थिति खतरनाक है इसलिए टीके की हेसिटेन्सी की प्रकृति और इसके कारकों को समझने के लिए, हमारे समूह ने विभिन्न प्रश्नों का उपयोग करते हुए वाराणसी और आसपास के क्षेत्रों में व्यापक ऑनलाइन और ऑफलाइन सर्वेक्षण किया। मानव विज्ञान विभाग बीएचयू के उत्कर्ष श्रीवास्तव और अवनीश कुमार त्रिपाठी, जो इस शोध के पहले लेखक हैं, ने कहा कि इस सर्वेक्षण में आश्चर्यजनक था कि भारत में सबसे घातक दूसरी लहर के दौरान, 75% से अधिक लोगों ने या तो कोविड को गंभीरता से नहीं लिया या फर्जी खबरों पर भरोसा किया। 

सामाजिक स्थिति वाले लोगों की तुलना में कम हेसिटेन्ट
बीएचयू में मनोविज्ञान विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रो. राकेश पांडे जिन्होंने इस सर्वेक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ने बताया कि इस प्रमुख अध्ययन में हमने वैक्सीन हेसिटेन्सी और सामाजिक आर्थिक स्थिति के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध देखा। उच्च आय और सामाजिक स्तर वाले लोग कम आय और सामाजिक स्थिति वाले लोगों की तुलना में कम हेसिटेन्ट हैं। वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के द्वारा यह चेतावनी दी है कि जिन लोगों को न तो टीका लगाया गया है और न ही कभी संक्रमित हुए हैं, वे वायरस फैलाने और नए प्रकार के वैरिएंट बनाने का माध्यम बन सकते हैं, जो वैक्सीन रोधी वैरिएंट की सम्भावना को बढ़ा देगा। टीम ने उम्मीद जताई है कि इस व्यापक सर्वेक्षण से सरकार को उत्तर भारत में कोविड-19 के लिए अपनी टीकाकरण नीतियों को बेहतर करने में मदद मिलेगी।

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