बनारस के लकड़ी उद्योग का दक्षिण भारत में बढ़ा दबदबा, हुनरमंदों की कलाकारी को मिली पहचान

Published : Sep 29, 2022, 04:59 PM IST
बनारस के लकड़ी उद्योग का दक्षिण भारत में बढ़ा दबदबा, हुनरमंदों की कलाकारी को मिली पहचान

सार

वाराणसी के लकड़ी के खिलौनों की मांग दक्षिण भारत में बढ़ती जा रही है। इन खिलौनों को इनकी कारीगरी औऱ सुंदरता के चलते ही यह पहचान मिल रही है। लोग अपने घरों में सजाने के लिए इन्हें ऑर्डर कर रहे हैं। 

अनुज तिवारी
वाराणसी:
प्रदेश के ओडीओपी और जीआई टैग के तहत आने वाले उत्पाद लकड़ी के खिलौनों की मांग दक्षिण भारत के गोलू फेस्टिवल में बढ़ती जा रही है। दरअसल, साउथ इंडिया में होने वाले 10 दिनों के गोलू त्योहार में अन्य खिलौनों के साथ बनारस के लकड़ी उद्योग के खिलौने एवं मूर्तियों को भी सजा कर पूजा की जाती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक जिला एक उत्पाद तथा पीएम मोदी ने जीआई टैग के जरिए लकड़ी के खिलौना उद्योग को जो अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई, यह उसी का नतीजा है कि दुनिया में इसकी मांग बढ़ती जा रहा है और पूर्वांचल के शिल्पियों के साथ हुनरमंद को उनकी कलाकारी का उचित दाम मिल रहा है। 

बनारस के कारीगरों में अद्भुत कारीगरी
गोलू यानी फेस्टिवल ऑफ़ डॉल्स दक्षिण भारत में शरद ऋतु नवरात्र में गुड़ियों का उत्सव है। ये दक्षिण भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। 10 दिनों तक चलने वाले इस गुड़िया फेस्टिवल में देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ घर में रहे सारे गुड्डे गुड़ियां एवं खिलौनों को सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। विषम संख्या (3,5,7,9 ) की सीढ़ीनुमा (स्टेप्स) सेज बनाकर मूर्तियों को सजाया जाता है। हर साल कम से कम तीन मूर्तियों को झांकी में जोड़ने की परंपरा है। इन मूर्तियों में बनारस के लकड़ी के खिलौने को अपनी कारीगरी और सुंदरता के कारण ख़ासा पसंद किया जा रहा है। मैसूर के मशहूर खिलौनों के शोरूम के मालिक आरजी सिंह ने बताया कि बनारस के लकड़ी के खिलौने की शिल्पी काफी हुनरमंद है, उनके हाथों में अद्भुत कारीगरी है, वे बड़े भाव से लकड़ी पर भगवान की आकृति बनाते हैं। उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत की परिवेश से मिलती जुलती मूर्तियों को बनाने का ऑर्डर वे बनारस के शिल्पियों को देते हैं। उनके स्टोर से वाराणसी के लकड़ी के ख़िलौने में गोलू फेस्टिवल में राजा, राजा का हाथी उनका लावलश्कर, घोड़े, भगवन राम, राम दरबार, श्री कृष्ण, मां दुर्गा आदि देवी देवताओं की मूर्तियां ज़्यादा बिकती हैं। अन्य दिनों में देवी देवताओं के मूर्तियों के साथ घरों में सजाने के लिए लकड़ी के खिलौनों की मांग खूब रहती है। 

फेस्टिवल से छ माह पहले ही आने लगते हैं आर्डर 
लकड़ी के खिलौना से जुड़े वाराणसी के लोलार्क कुंड के प्रमुख व्यापारी बिहारी लाल अग्रवाल ने बताया कि जब से प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लकड़ी के खिलौने के उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार प्रसार किया है तब से इसकी मांग देश और विदेशो में बहुत बढ़ गई है। गोलू फेस्टिवल के लिए दक्षिण भारत के अलग-अलग प्रांतों से करीब 5-6 महीने पहले से ही आर्डर आने लगते हैं, जिससे उनके साथ सैकड़ों शिल्पियों को रोज़गार मिलता रहता है। विभिन्नता में एकता वाले देश भारत के पूर्वी भारत में नवरात्र के साथ दक्षिण भारत में गोलू फेस्टिवल की शुरुआत होती है, जो महानवमी तक चलती है। आरजी सिंह ने बताया कि इस त्योहार को दक्षिण भारत के अलग अलग प्रातों में कई नामों से जाना जाता है। तमिल में बोम्मई कोलू, तेलुगू में बोम्मला कोलुवु, कन्नड़ में बोम्बे हब्बा बोलते हैं। ऐसी मान्यता है कि वर्षों पूर्व इन 10 दिनों तक तत्कालीन मैसूर के राजा अलग-अलग प्रांतों के मुख्य अधिकारियों के साथ सीढ़ी नुमा जगह पर बैठ कर दशहरा का उत्सव मनाते थे इसलिए इसकी झांकी सीढ़ी के आकर की होती है, जिस पर सबसे ऊपर राजा और रानी को रखा जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि इसी दिन महिषासुर नामक राक्षस का अंत चामुंडा देवी ने किया था, इस ख़ुशी में ये त्योहार मनाया जाता है।

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