लिवरपूल में रहने वाले 58 साल के केविन डोनेलों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दिव्यांग केविन का सरकार पर आरोप है कि उन्हें सरकार को साल में तीन बार ये विश्वास दिलाना पड़ता है कि वो चलने-फिरने से लाचार हैं। इसे लेकर उन्होंने सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जाहिर किया है।
लिवरपूल: भारत में सरकार दिव्यांगों के लिए कई तरह की योजनाएं लेकर आती है। ताकि उनकी जिंदगी थोड़ी आसान की जाए। यहां एक बार अगर सरकारी योजना के लिए पंजीकृत हो गए, तो आपको आराम से सुविधाएं मिलनी शुरू हो जाती है। लेकिन शायद इंग्लैंड में सरकार लोगों को सुविधाएं देने से पहले कई बार सोचती है। इसे लेकर बार-बार जांच की जाती है। इसी से नाराज होकर लिवरपूल में रहने वाले केविन ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। केविन का आरोप है कि पहले तो सरकारी रिसर्च के नाम पर उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी गई। अब सरकार उन्हें मदद के नाम पर टॉर्चर कर रही है।
थैलिडोमाइड ट्रेजेडी के हैं शिकार
केविन उन बच्चों में से एक हैं, जो थैलिडोमाइड ट्रेजेडी के शिकार हुए थे। इस ट्रेजेडी में करीब 2000 बच्चों की जिंदगी बर्बाद कर दी गई थी। इसमें रिसर्च के नाम पर गर्भवती महिलाओं को एक ड्रग्स दिया गया था। इस ड्रग्स के असर के कारण सभी बच्चे दिव्यांग हो गए थे। किसी के जन्म से हाथ नहीं थे तो किसी के पैर गायब थे। इस ट्रेजेडी के शिकार 500 से भी कम विक्टिम 50 साल से ज्यादा जी पाए। बाकियों की मौत इससे पहले ही हो गई।
भत्ते के लिए करना पड़ता है स्ट्रगल
केविन ने सरकार पर आरोप लगाया है कि उनसे हर साल तीन बार सबूत मांगा जाता है कि वो दिव्यांग ही है। इस फॉर्म में ये पता करवाया जाता है कि शख्स काम कर सकता है या नहीं? केविन का कहना है कि सरकार को शायद ऐसा लगता है कि हर तीन महीने में उनके हाथ-पैर आ सकते हैं।
डायबिटिक भी हैं केविन
केविन उन बच्चों में शामिल थे, जिन्हें गर्भ में ये ड्रग्स दिया गया था। इस कारण उनका जन्म बिना पैरों के हुआ था। केविन के अनुसार पिछले `15 साल से वो काम करने में बिल्कुल असमर्थ हैं। नकली पैरों के कारण उनके बैक में काफी दर्द होता है। साथ ही उन्हें टाइप 2 डायबिटीज भी है। फिर भी सरकार उन्हें टॉर्चर कर रही है। इसे लेकर अब केविन ने आवाज उठाई है।