एक ऐसा दंगा जिसे रोकने में ब्रिटिश सेना के छूट गए थे पसीने, 38 साल चलाया था अभियान

आज से करीब 50 साल पहले ब्रिटिश सेना ने उत्तरी आयरलैंड में पहुंची थी। तब यहां भीषण दंगे हो रहे थे, जिस पर काबू पाने के लिए ब्रिटिश सेना को भेजा गया था। लेकिन यहां ब्रिटिश सेना का अभियान इतिहास का सबसे लंबा अभियान बन गया और यह करीब 38 वर्षों तक चला।

Asianet News Hindi | Published : Aug 16, 2019 11:32 AM IST

लंदन। उत्तरी आयरलैंड के कैथोलिक समुदाय में वोटिंग, मकान और नौकरियों में भेदभाव किए जाने को लेकर लंबे समय से असंतोष था जो आगे चल कर 1968 के अक्टूबर में  लंदनडेरी में दंगों के रूप में भड़क उठा।  उस समय यह उत्तरी आयरलैंड का कैथोलिक बहुत सबसे बड़ा शहर था।  1969 में 12 अगस्त को प्रोस्टेंट समुदाय के लोगों का सालाना जुलूस वहां से गुजरा तो कैथोलिकों ने उन पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। इसके बाद अगले तीन दिनों तक लंदनडेरी और बॉगसाइड में  कैथोलिक युवाओं, प्रोस्टेंट लोगों और पुलिस के बीच जम कर संघर्ष हुआ। पुलिस ने दंगों को रोकने की पूरी कोशिश की, पर इसमें सफलता नहीं मिली। दोनों समुदायों के दंगाई पत्थर और बोतल बमों से हमला करत रहे।

मानो शुरू हो गया था युद्ध
उस समय न्यूज एजेंसी एएफपी के एक पत्रकार ने लिखा था कि यहां देख कर ऐसा लगता है कि कोई युद्ध लड़ा जा रहा है। धीरे-धीरे अशांति बढ़ती ही जा रही थी। यहां तक कि दंगों की आग प्रंतीय राजधानी बेलफास्ट तक जा पहुंची, जहां 15 अगस्त को पहली मौत हुई। 

मांगी  ब्रिटेन से मदद
उत्तरी आयरलैंड की सरकार ने 14 अगस्त को ही ब्रिटेन के प्रधानमंत्री से मदद मांगी थी। उसी दिन ब्रिटेन के सैनिक लंदनडेरी पहुंच गए। एएफपी के अनुसार, 6 बख्तरबंद गाड़ियां लंदनडेरी के वाटरलू चौराहे पर पहुंची थीं, जिनमें 4 ब्रिटिश सेना की थीं। सौनिकों ने कांटेदार बाड़ लगा कर कैथोलिक प्रदर्शनकारियों को प्रोस्टेंट इलाकों में जाने से रोकने की कोशिश की, पर वहां हिंसा बढ़ती ही गई। पहले जहां महज 300 सौनिक आए थे, कुछ ही दिनों में सैनिकों की संख्या 30,000 हो गई। 

लोगों ने किया था सैनिकों का स्वागत
शुरुआत में लंदनडेरी के कैथोलिक समुदाय के लोगों ने सैनिकों का स्वागत किया था और पुलिस के बारे में कहा था कि वह प्रोस्टेंट से मिली हुई है, लेकिन बहुत ही जल्दी ब्रिटेन की सेना पर भी भेदभाव करने के आरोप कैथोलिक समुदाय के लोगों ने लगाने शुरू कर दिए।  इसके बाद कैथोलिक समर्थक प्रोविजनल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (आईआरए) ने शाही सेना के खिलाफ गोलीबारी करनी शुरू कर दी। आईआरए के उग्रवादियों ने फरवरी 1971 में पहले ब्रिटिश सैनिक की हत्या की। इस पूरे अभियान में आईआरए उग्रवादियों ने करीब 760  ब्रिटिश सैनिकों की हत्या कर दी। इसके जवाब में प्रोस्टेंट अर्धसैनिक गुट भी लगातार हमला करते रहे थे। इसके बाद अगले तीन दशकों तक दोनों समुदायों में संघर्ष लगातार जारी रहा। 

महारानी के भाई की हत्या
मार्च 1972  में ब्रिटेन ने नॉर्थ आयरलैंड के की प्रांतीय सरकार को निलंबित कर दिया और वहां का शासन अपने हाथ में ले लिया। उस दौरान ब्रिटेन के सैनिकों ने बड़े पैमाने पर आईआरए के लोगों की हत्या की। दरअसल, आईआरए के उग्रवादियों ने ब्रिटेन में घातक हमले शुरू कर दिए थे और महारनी एलिजाबेथ द्वितीय के चचेरे भाई लॉर्ड लुई माउंटबेटन की हत्या कर  दी थी। 

गुड फ्राईडे एग्रीमेंट
आखिरकार, शांति के लिए वर्षों से चल रही कोशिशों के बाद 10 अप्रैल, 1998 को गुड फ्राईडे एग्रीमेंट हुआ, जिसके बाद हिंसा रुकी। लेकिन तब तक करीब 3,500 लोगों की जान जा चुकी थी। इस समझौते के बाद आईआरए ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया और फिर अर्द्ध स्वायत्त उत्तरी आयरलैंड अस्तित्व में आया। प्रोस्टेंट और कैथोलिकों के बीच भी सत्ता में साझेदारी को लेकर समझौता हो गया। धीरे-धीरे ब्रिटेन ने भी उत्तरी आयरलैंड में अपनी सैन्य मौजूदगी कम करनी शुरू कर दी और 31 जुलाई, 2007 की मध्य रात्रि में ब्रिटेन का सैन्य मिशन समाप्त हो गया। 

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