कब्जे वाली नीति से बाज नहीं आ रहा चीन, कई देशों में खोल लिए अवैध पुलिस स्टेशन, जानिए क्या है उनका काम

एक तरफ चाइनीज राष्ट्रपति शी जिनपिंग के खिलाफ उनके ही देश में तख्तापलट की साजिशें रची जा रही हैं। दूसरी तरफ वे और उनकी सरकार कई देशों पर कब्जे के ख्वाब देख रहे हैं। फिलहाल, कुछ देशों में अवैध पुलिस स्टेशन खोले जाने का मामला सामने आय है। 

Asianet News Hindi | / Updated: Sep 30 2022, 07:46 AM IST

टोरंटो। चीन की कब्जा करने वाली नीति से अब उसके पड़ोसी देश ही नहीं बल्कि, कई बड़े विकसित देश भी परेशान हो गए हैं। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कुर्सी एक तरफ खुद उनके ही देश में खतरे में दिख रही है, मगर वे दुनियाभर में कब्जे के ख्वाब देखना अब भी नहीं छोड़ रहे हैं। उनकी सरकार ने दुनियाभर में कई देशों में अवैध पुलिस चौकियां स्थापित की हैं। हैरानी तो इस बात की है कि ये पुलिस स्टेशन कनाडा और आयरलैंड जैसे विकसित देशों में भी खुले हैं। 

दुनियाभर में महाशक्ति बनने का ख्वाब पाले चीन अपनी महात्वाकांक्षा पूरी करने के लिए सारी हदें पार कर रहा है। पहले उससे जहां पड़ोसी देश ही परेशान रहते थे, अब दूर-दराज के विकसित देश भी उसकी कारस्तानी  से तंग हैं। चीन ने इन दिनों कनाडा और आयरलैंड समेत कई देशों में अवैध पुलिस चौकियां स्थापित कर ली हैं। उसका यह कदम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए चिंता का सबब बन गया है। 

इन पुलिस स्टेशन के जरिए जासूसी हो रही 
मीडिया रिर्पोट्स में दावा किया जा रहा है कि चीन ने कनाडा में नागरिक सुरक्षा ब्यूरो यानी पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो से जुड़े कई अनाधिकृत पुलिस सर्विस स्टेशन खोल लिए हैं और इनके जरिए चीन तथा उसकी नीतियों का विरोध करने वालों की जासूसी की जा रही है। मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि इन अवैध पुलिस चौंकियों जिन्हें शॉर्ट में पीएसबी भी कहा जा रहा है, चीन इसके जरिए अपने विरोधियों पर दबाव बनाना चाहता है। 

चुनावी गतिविधियां प्रभावित कर रहा 
दावा यह भी किया जा रहा है कि जिन देशों में चीन ने ये पुलिस स्टेशन खोल लिए हैं, उसके जरिए वह वहां की सरकार और दूसरी महत्वपूर्ण तथा गोपनीय चीजों की जानकारी जुटाते हुए उन पर नजर रखे हुए है। कनाडा जैसे विकसित देश में भी पीएसबी की अनौपचारिक सर्विस जारी है। सिर्फ टोरंटो के आसपास क्षेत्र में तीन अवैध पुलिस चौकियां स्थापित की गई हैं। दावा यह भी किया जा रहा है कि इसके जरिए चीन उन देशों के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करते हुए चुनावी गतिविधियों को भी प्रभावित कर रहा है। 

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