क्या है FATF, कैसे करता है काम; इसकी ग्रे और ब्लैक लिस्ट में शामिल होने वाले देशों के साथ होता है कैसा सलूक?

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी FATF की दो दिनी बैठक 20 अक्टूबर से पेरिस में शुरू हो रही है। ये बैठक भारत के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि हर किसी की नजरें इस बात पर टिकी हैं, कि क्या FATF पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर करेगा।

Ganesh Mishra | Published : Oct 20, 2022 6:11 AM IST / Updated: Oct 20 2022, 11:42 AM IST

Financial Action Task Force: फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी FATF की दो दिनी बैठक 20 अक्टूबर से पेरिस में शुरू हो रही है। ये बैठक भारत के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि हर किसी की नजरें इस बात पर टिकी हैं, कि क्या FATF पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर करेगा। पाकिस्तान के नए वित्त मंत्री इशाक डार का दावा है कि उनका देश अब ग्रे लिस्ट से बाहर आ जाएगा, क्योंकि उन्होंने FATF की हर एक शर्त को पूरा किया है। 

FATF बैठक में क्या होगा?
FATF की बैठक में इस बात पर भी विचार किया जाएगा कि किन देशों की वजह से इंटरनेशनल फाइनेंशियल सिस्टम को खतरा है। बता दें कि पाकिस्तान को जून, 2018 में ग्रे लिस्ट में शामिल किया गया था। उस पर मनी लॉन्ड्रिंग, टेरर फंडिंग और कमजोर कानून बनाने जैसे गंभीर आरोप हैं। FATF का कहना था कि पाकिस्तान की वजह से ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम को खतरा हो सकता है। 

क्या है FATF?
FATF का पूरा नाम फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स है। इसकी स्थापना जी7 देशों की पहल पर 1989 में की गई थी। वर्तमान में इस संगठन के 39 सदस्य हैं, जिनमें 37 फुल मेंबर जबकि 2 रीजनल ऑर्गनाइजेशन हैं। इसका मुख्यालय फ्रांस की राजधानी पेरिस में आर्थिक सहयोग विकास संगठन (OECD) के मुख्यालय में स्थित है। हर तीन साल में FATF की मीटिंग होती है। बता दें कि भारत 2010 में FATF का सदस्य बना। 

क्या है FATF का उद्देश्य?
इसका उद्देश्य मनी लॉड्रिंग के साथ ही आतंकवादी वित्तपोषण जैसे खतरों को रोकना है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता के लिए कानूनी और विनियामक उपायों को लागू करना है। FATF की सिफारिशों को पहली बार 1990 में लागू किया गया था। उसके बाद 1996, 2001, 2003 और 2012 में FATF की सिफारिशों को संशोधित किया गया। 

FATF की 'ग्रे लिस्ट' में शामिल होने के क्या हैं मायने?
किसी भी देश का FATF की ‘ग्रे’ लिस्ट में शामिल होने का मतलब ये है कि वह देश आतंकवादी फंडिंग और मनी लॉड्रिंग पर अंकुश लगाने में नाकामयाब रहा है।

FATF की 'ब्लैक लिस्ट' में शामिल होने के क्या हैं मायने?
किसी भी देश का FATF की ‘ब्लैक’ लिस्ट में शामिल होने का मतलब ये है कि उस देश को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा वित्तीय सहायता मिलनी बंद हो जाएगी।

पाकिस्तान कब-कब आया ग्रे लिस्ट में?
- जून 2018 में FATF ने पाकिस्तान को आतंकवादी गतिविधियों हेतु वित्तपोषण के नियंत्रण में असफल रहने के कारण ग्रे लिस्ट शामिल किया गया था। हालांकि, 2009 में वो लिस्ट से बाहर आ गया। 
- इसके बाद 2012 में एक बार फिर पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट में डाला गया। लेकिन 4 साल बाद यानी 2016 में वो इससे बाहर आ गया। 
- 2018 में पाकिस्तान को फिर से ग्रे लिस्ट में शामिल किया गया है। हालांकि, पाकिस्तान इस लिस्ट से बाहर आने की पूरी कोशिश कर रहा है।  

किसी देश के ब्लैक लिस्ट में आने पर क्या होगा?
- यदि किसी देश को FATF की ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाता है तो उस देश की अर्थव्यवस्था को बेहद कठिन दौर से गुजरना पड़ता है। उस देश में अन्य देश इन्वेस्टमेंट करना बंद कर देते हैं। 
- साथ ही उस देश को अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग मिलना भी बंद हो जाता है। विदेशी कारोबारियों और बैंकों का उस देश में कारोबार करना मुश्किल हो जाता है। मल्टीनेशनल कंपनियां ब्लैक लिस्ट में शामिल देश से अपना कारोबार बंद कर सकती हैं।
- ब्लैक लिस्ट में शामिल देश को विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) और यूरोपियन यूनियन जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज मिलना काफी कठिन हो जाता है। इसके अलावा रेटिंग एजेंसियां मूडीज़, स्टैंडर्ड एंड पूअर और फिच रेटिंग भी घटा हैं।

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