Taiwan को लेकर क्यों इतना आक्रामक है China? क्यों बढ़ रहा चीन और अमेरिका के बीच विवाद?

अमेरिकी हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ऐतिहासिक यात्रा को लेकर ताइवान दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच टकराव का केंद्र बन गया है। चीन की धमकियों के बीच एक अतिसुरक्षित विमान में नैन्सी पेलोसी ताइवान पहुंच चुकी हैं। चीन-ताइवान का विवाद करीब चार दशक पुराना है। 

Dheerendra Gopal | Published : Aug 2, 2022 4:49 PM IST

नई दिल्ली। ताइवान (Taiwan) में अमेरिकी हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी (Nancy Pelosi) पहुंच चुकी है। चीन की धमकियों को नजरअंदाज कर अमेरिकन हाउस स्पीकर पेलोसी 24 फाइटर जेट के कवर के बीच ताइपे पहुंची। अब चीन (China) ने टारगेटेड मिलिट्री एक्शन की बात कही है तो अमेरिका (America) ने साफ किया है कि उसने किसी भी समझौते का न तो उल्लंघन किया है न ही वन-चाइना पॉलिसी (One China Policy) को खंडित करने की कोशिश की है। लेकिन अमेरिका ने यह भी कहा है कि वह ताइवान की सुरक्षा के लिए हर स्तर पर तैयार है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर दोनों देश ताइवान को लेकर क्यों इतने आक्रामक क्यों हैं। जानते हैं क्यों महत्वपूर्ण है ताइवान...

चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता

दरअसल, चीन वन-चाइना पॉलिसी (One China Policy) के तहत अपने सीमावर्ती क्षेत्रों के कई एरिया पर अपना एकाधिकार समझता है। इसी पॉलिसी के तहत वह ताइवान को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है। जबकि ताइवान खुद को एक आजाद देश मानता है। वहां उसकी अपनी लोकतांत्रिक सरकार है। ताइवान का अपना संविधान है। दरअसल, ताइवान चीन के दक्षिण पूर्वी तट की ओर बसा एक द्वीप है। चीन का लक्ष्‍य ताइवान को अपनी ओर झुकाना और राजनीतिक रूप से ताइवान को यह मनवाना हो कि उस पर चीन का एकाधिकार है। इधर, अमेरिका भी वन चाइना पॉलिसी को मानता है, लेकिन ताइवान पर चीन का कब्जा नहीं देख सकता। दरअसल, ताइवान सहित आसपास के तमाम ऐसे देश हैं जिनका अमेरिका को समर्थन हासिल है। यह अमेरिकी विदेश नीति की लिहाज से काफी अहम है। ऐसे में चीन यदि ताइवान पर कब्जा कर लेता है तो पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना दबदबा दिखाने को स्वतंत्र हो जाएगा। गुआम व हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकानों को भी चीन के बढ़ते प्रभाव से खतरा हो सकता है। 

चीन और ताइवान क्या कभी एक थे?

चीन व ताइवान के बीच दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अलगाव हुआ था। उस वक्त चीन की मुख्य भूमि में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का वहां की सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) के साथ लड़ाई चल रही थी। 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और राजधानी बीजिंग पर कब्जा कर लिया। उसके बाद, कुओमिंतांग के लोग मुख्य भूमि से भागकर दक्षिणी-पश्चिमी द्वीप ताइवान चले गए। उसके बाद से अब तक कुओमिंतांग ताइवान की सबसे अहम पार्टी बनी हुई है। ताइवान के इतिहास में ज़्यादातर समय तक कुओमिंतांग पार्टी का ही शासन रहा है।

नैन्सी पेलोसी पहुंची ताइवान

अमेरिकी हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ऐतिहासिक यात्रा को लेकर ताइवान दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच टकराव का केंद्र बन गया है। चीन की धमकियों के बीच एक अतिसुरक्षित विमान में नैन्सी पेलोसी ताइवान पहुंच चुकी हैं। पेलोसी को कवर करने के लिए 24 फाइटर विमान भेजे गए थे। पढ़िए पूरी खबर...

चीन ने बार बार चेताया है अमेरिका को...

चीन ने मंगलवार को भी अमेरिका को चेतावनी दी। उसने अमेरिका को कहा कि वन चाइना प्रिंसिपल ही चीन-अमेरिका संबंधों का राजनीतिक आधार है। अगर अमेरिका, ताइवान स्वतंत्रता को लेकर चीन के खिलाफ अलगाववादी नीति को अपनाता है तो उसको जवाब दिया जाएगा। अमेरिकी अधिकारी पेलोसी द्वारा ताइवान की यात्रा से चीन के आंतरिक मामलों में भारी हस्तक्षेप होगा। इससे ताइवान स्ट्रेट्स में शांति और स्थिरता को बहुत खतरा होगा, चीन-अमेरिका संबंधों को गंभीर रूप से कमजोर करेगा और बहुत गंभीर स्थिति और गंभीर परिणाम देगा। पढ़िए पूरी खबर...

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