सार

नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (National Academy of Sciences) ने अपने एक स्टडी  में पाया है कि मकई-आधारित इथेनॉल पेट्रोल की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग में बहुत बड़ा स्त्रोत हो सकता है, क्योंकि मकई उगाने के लिए भूमि के इस्तेमाल में बदलाव किया जाता है, इसमें उर्वरकों का उपयोग करने से स्थिति गंभीर हो सकती है। 

ऑटो डेस्क । भारत में कच्चे तेल का आयात घटाने और कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए पेट्रोल में 20 फीसदी तक एथेनॉल मिलाने की रणनीति बनाई जा रही है।  वहीं एक स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। एक अध्ययन में दावा किया गया है कि मकई-आधारित इथेनॉल, जो कि अमेरिका में बहुत इस्तेमाल किया जाता है, इसमें पारंपरिक पेट्रोल की तुलना में कम से कम 24 प्रतिशत अधिक कार्बन की मात्रा मिली है। 

मकई उगाने उर्वरकों का इस्तेमाल
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (National Academy of Sciences) ने अपने एक स्टडी  में पाया है कि मकई-आधारित इथेनॉल पेट्रोल की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग में बहुत बड़ा स्त्रोत हो सकता है, क्योंकि मकई उगाने के लिए भूमि के इस्तेमाल में बदलाव किया जाता है, इसमें उर्वरकों का उपयोग करने से स्थिति गंभीर हो सकती है। 

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नई स्टडी ने खड़े किए सवाल
यह स्टडी अमेरिकी कृषि विभाग (US Department of Agriculture) द्वारा किए गए 2019 के एक अध्ययन के निष्कर्षों का को भी झूठा साबित करती है। जिसमें दावा किया गया था कि इथेनॉल की कार्बन तीव्रता पेट्रोल की तुलना में 39 प्रतिशत कम है। हालांकि, इस स्टडी में  भूमि के बदलाव के दौरान उत्सर्जन की भी गणना की गई है। ।

ब्राजील और अमेरिका में इथेनॉल का जमकर इस्तेमाल
इथेनॉल और अन्य जैव ईंधन को आमतौर पर अपेक्षाकृत ग्रीन एनर्जी माना जाता है, यही वजह है कि कई देश ऑटोमोबाइल निर्माताओं और ऊर्जा उद्योग को इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल को अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं, जिससे कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी आएगी। मौजूदा समय में मकई से निर्मित इथेनॉल का ब्राजील और अमेरिका में जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत भी इथेनॉल-मिक्स पेट्रोल के इस्तेमाल के लिए रणनीति बना चुका है। 

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गन्ने आधारित इथेनॉल की स्थिति अलग
हालांकि, जहाँ ब्राज़ील मुख्य रूप से गन्ने पर आधारित इथेनॉल का उपयोग करता है और भारत भी उसी प्रकार के इथेनॉल पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, वहीं अमेरिका मकई-आधारित इथेनॉल पर निर्भर है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का प्रशासन जलवायु बदलाव से निपटने के लिए 2050 तक अपनी अर्थव्यवस्था को कार्बन मुक्त करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए कई ऑप्शन पर एक साथ काम कर रहे हैं। 

उर्वरकों के अधिक उपयोग से हो रहा कार्बन का उत्सर्जन
अमेरिकी सरकार ने 2005 में देश के तेल रिफाइनरों को सालाना पेट्रोल में लगभग 15 अरब गैलन मकई-आधारित इथेनॉल मिलाने के लिए एक कानून बनाया है। वहीं स्टडी में दावा किया गया है कि इससे मकई की खेती 8.7 प्रतिशत तक बढ़ गई है।  साल 2008 और 2016 के बीच 6.9 मिलियन एकड़ भूमि में मकई का उत्पादन हुआ है। जिससे भूमि उपयोग में बड़ा बदलाव आया है।  दरअसल मकई की अधिक पैदावार लेने के लिए नाइट्रोजन उर्वरकों या अन्य कृषि कार्यो के दौरान मिट्टी से फंसे कार्बन को छोड़ दिया गया है जिससे उत्सर्जन होता है।

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आम लोगों की भी बढ़ी टेंशन
भारत सरकार इथेनॉल का इस्तेमाल 20 फीसदी करने और कंपनियों को इसके लिए वाहनों में फ्लेक्स फ्यूल इंजन देने का निर्देश दे चुकी है। नई स्टडी ने  निश्चित  तौर पर सरकारों के साथ ऑटो सेक्टर और आम लोगों की टेंशन बढ़ा दी है।

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