सार
बिहार के गया के विष्णु मसान श्मसान घाट पर बुधवार को ऐसा पहली बार हुआ जब पूरे दिन दाह-संस्कार के लिए एक भी शव नहीं पहुंचा। काफी देर इंतजार करने के बाद स्थानीय डोमराज और विष्णुपद मंदिर के पंडा ने गयासुर राक्षस को शांत करने के लिए एक पुतले को अज्ञात शव मानकर उसका दाह-संस्कार किया।
गया। सनातन धर्म में बिहार के गया को मोक्षदायिनी माना गया है। यहां हर साल लाखों लोग अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के उद्देश्य से पहुंचते हैं। पितृपक्ष के समय यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। जिस गयासुर दानव के नाम पर इस शहर का नाम गया पड़ा, उसके बारे में शास्त्र व पुराणों की मान्यता है कि गयासुर ने भगवान विष्णु से हर दिन एक मुंड व एक पिंड का वरदान मांगा था। उस वरदान के बाद से ही गया में प्रतिदिन किसी न किसी शव का दाह संस्कार वर्षों से होता आ रहा है। आमतौर पर यहां रोजाना 15-20 शव जलाए जाते हैं। लॉकडाउन की वजह से शवों की आमद कम हो गई है और बुधवार को तो ऐसा हुआ कि शाम तक गया के विष्णु मसान श्मशान घाट पर एक भी शव दाह संस्कार के लिए नहीं पहुंचा।
पुतले को अज्ञात शव को मान किया दाह-संस्कार
कोई शव नहीं आता देख विष्मुपद के पंडा समाज के साथ-साथ श्मशान घाट पर शव जलाने वाले डोमराज चिंतिंत हो गए। लोगों में यह चिंता हो गई कि एक पिंड या एक मुंड नहीं दिया गया तो कहीं गयासुर जाग न जाए। और यदि ऐसा होता है तो उसका परिणाम विनाशकारी होगा। इसी चिंता के बीच गयासुर को शांत करने के लिए पंडा समाज के एक सदस्य और डोम राज ने एक पुतले को अज्ञात शव बताते हुए विधि-विधान उसका दाह संस्कार किया। ताकि यह परंपरा जीवित रहे।
लॉकडाउन के कारण दिक्कतें
स्थानीय लोगों के मुताबिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब गया के विष्णु मसान श्मशान घाट पर एक भी चिता नहीं जली। जबकि सामान्य दिनों में यहां चिताओं की लाइन लगी होती है। लोगों ने काफी देर तक किसी शव का इंतजार किया लेकिन जब कोई शव नहीं पहुंचा तो एक पुतले को अज्ञात शव मानते हुए धार्मिक विधि-विधान से 4 लोगों ने कंधा दिया। फिर उसका वैदिक रीति-रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया।
बता दें कि इस समय कोरोना के कारण लॉकडाउन चल रहा है। लॉकडाउन की घोषणा के बाद से गया में शव के साथ पर्यटकों का आना काफी कम हो गया है। इस बीच बुधवार को ऐसा दिन बिता जब कोई भी चिता विष्णु मशान श्मसान घाट में जलाने के लिए नहीं पहुंचा।