सार

 फिल्म 'जबरिया जोड़ी' के लेखक संजीव के. झा की जुबानी KBC में 5 करोड़ रुपए जीतने वाले बिहार के सुशील कुमार की अनूठी मुहिम से जुड़ी प्रेरक कहानी। जब बाइक से झा के गांव पहुंचे सुशील कुमार।

मोतिहारी(बिहार). यह 8 साल पुरानी बात है। वर्ष, 2011 में मोतिहारी(पूर्वी चंपारण) के एक छोटे-से गांव के रहने वाले सुशील कुमार KBC में 5 करोड़ रुपए जीतकर सुर्खियों में आए थे। वे सेलिब्रिटी तो बने, लेकिन अपनी जमीं नहीं छोड़ी। जानिए 'जबरिया जोड़ी' जैसी फिल्म लेखक संजीव के. झा की जुबानी..सुशील कुमार की पर्यावरण से जुड़ी अनूठी मुहिम की कहानी..

चंपा से चंपारण तक...
सुशील कुमार और मैं एक ही जिले से हैं। इसलिए हमारा बहुत पुराना परिचय है। दोस्ती है। जब भी मैं अपने गांव जाता हूं, तो सुशील कुमार से मिलना होता है। लेकिन इस बार यह मुलाकात यादगार रही। यह सबको पता है कि सुशील कुमार पिछले कई सालों से अपने जिले को हरा-भरा बनाने पेड़-पौधे लगाने की मुहिम चला रहे हैं। उनका एक ही कहना है कि जंगल वापस आने चाहिए। जैसा कि सबको पता है कि चंपारण का नाम ही चंपा के पेड़ों से पड़ा है। सुशील कुमार फिर से चंपा से चमन लाना चाहते हैं। मुझे खुशी है कि सुशील भाई मेरे जिले से हैं, मेरे दोस्त हैं। उन्होंने अपने आसपास के 5 गांव गोद लिए हुए हैं। यहां वे चंपा, हरसिंगार और पीपल जैसे पौधे रोप रहे हैं। यह पर्यावरण के लिहाज से बहुत अच्छा प्रयास है। पहले मैं सुनता आया था कि सुशील भाई खुद को सामाजिक कार्यों और पर्यावरण में समर्पित कर चुके हैं। 

22 किमी दूर बाइक से मेरे गांव पौधे लेकर आए..
सुशील भाई से जब मेरी बात हुई, तो उन्होंने पौधे लगाने का जिक्र छेड़ा। मैंने उन्हें अपने गांव बुलाया। वे अपने गांव से 22 किमी दूर बाइक चलाकर पौधे लेकर मेरे गांव आए। यहां उन्होंने पौधे रोंपे। KBC में विनर बनने के बाद सुशील भाई को लेकर तमाम अफवाहें फैली थीं कि उन्होंने अपना सारा पैसा उड़ा दिया। उनका पैसा लुट गया-पिट गया। वे सेलिब्रिटी की तरह पेश आने लगे हैं। लेकिन जैसा मैंने उन्हें देखा..वे बिलकुल नहीं बदले। आज भी सुशील भाई एक साधारण व्यक्ति हैं। वे कभी कार से, कभी बाइक से..तो कभी पैदल ही पौधे रोपने निकल पड़ते हैं। सुशील कुमार अब तक हजारों पेड़ लगा चुके हैं। जहां तक मेरा ख्याल है कि इस मुहिम में सुशील भाई अपने सामर्थ्य से जी-जान से जुटे हुए हैं। शायद वे पैसा भी अपना खर्च कर रहे हैं।

 

शहरवाले गांवों को अपनी नजर से न देखें

दिल्ली आज प्रदूषण की भयंकर मार झेल रही है। इसके लिए गांवों को दोषी बताया जा रहा है। मेरा तर्क यह है कि शहरवाले अपनी नजर से गांवों को न देखें। कुछ अपवाद छोड़ दें, तो गांव में आज भी अगर 10 पेड़ काटे जाते हैं, तो उससे ज्यादा लगाए भी जाते हैं। मेरा यही कहना है कि कोई भी ऐसा नहीं होगा, जो पेड़ न लगाना चाहे, जरूरत सार्थक मुहिम की है। (जैसा कि संजीव के. झा ने अमिताभ बुधौलिया को बताया)

 

(संजीव के. झा और गांववालों को पौध देते सुशील कुमार)