सार

महंगाई और पति की कम कमाई से परिवार का सही से भरण-पोषण करना मुश्किल हो रहा था। जिसके बाद गांव की महिलाओं ने जीविका से जुड़कर सिल्क का कारोबार शुरू किया। जिससे वो अब लाखों रुपए कमा रही है।  
 

पूर्णिया। बढ़ती मंहगाई की वजह से केवल पति की कमाई से गुजर बसर में पेश आ रही परेशानियों को दूर करने के लिए पूर्णिया की महिलाओं ने जो तरकीब निकाली उसने न केवल उनके आर्थिक स्थिति को बदल दिया है बल्कि वे आसपास के लोगों के लिए भी मिसाल बन गईं हैं। दरअसल, पूर्णिया की गरीब महिलाओं ने आर्थिक तंगी दूर करने के लिए सिल्क वस्त्र निर्माण का कार्य शुरू किया। जो थोड़े ही समय में इतना बढ़ गया कि आज यहां की महिलाएं लाखों की कमाई कर रहीं है। 

कौशकी  सिल्क के नाम से कराया रजिस्टर
जीविका समूह से जुड़ी महिलाओं ने सिल्क की साड़ी निर्माण कार्य अपने हाथ में लिया और इसका ब्रांड नैम कौशकी मलबरी सिल्क रखा। जीविका की दीदियों की यह ब्रांड आज पूरे देश में फैल रहा है। आदर्श जीविका महिला मलवरी रेशम उत्पादक समूह की अध्यक्ष नीतू देवी, सचिव रानी देवी और कोषाध्यक्ष नूतन देवी बताती हैं कि तीन साल पहले किसानों के समूहों को मिलाकर आदर्श जीविका महिला मलवरी रेशम उत्पादक समूह का निर्माण किया था। समूह से 952 से जीविका समूह की दीदियों को जोड़ा गया। उन्होंने बताया कि इसकी शुरुआत 54 किसानों के साथ की गई थी। 

131 साड़ियों के निर्माण से शुरू किया काम
आदर्श जीविका समूह ने सिल्क साड़ियों के निर्माण कार्य छह क्विंटल कोकून से किया था। इससे महिलओं ने 131 साड़ियां बनाईं थी। आज 4875 किलो कोकून से सालाना 16.7 लाख रुपये की आय हो रही है और अब उनका लक्ष्य 400 साड़ियां बनाने का है। जीविका की अध्यक्षा ने बताया कि पहले कोकून बेचने का काम किया करतीं थीं। इससे बेचने से किसानों को अधिक फायदा नहीं हुआ। इसके बाद समूह ने धागा बनाने का फैसला किया और इसके लिए समूह ने 18 क्विंटल कोकून की खरीदारी की। बंगाल के मालदा जिले में कोकून से धागा निकलवाने का काम किया गया। इसके बाद बांका जिले के कटोरिया, भागलपुर जिले के नाथनगर एवं पश्चिम बंगाल के मालदा, मुर्शिदाबाद एवं वीरभूम जिले के बुनकरों द्वारा 130 डिजाइनर सिल्क साड़ी का निर्माण कराया गया, जिसे कौशकी मलबरी सिल्क का नाम दिया। उनके इस ब्रांड और कार्य की चर्चा मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कर चुके हैं।