सार

बालिका वधू जैसी फिल्मों का निर्दशन करने वाले दिग्गज फिल्ममेकर तरुण मजूमदार नहीं रहे। वे लंबे समय से कोलकाता के सरकारी अस्पताल में इलाज करा रहे थे।

एंटरटेनमेंट डेस्क. जाने-माने फिल्ममेकर तरुण मजूमदार (Tarun Majumdar) का निधन हो गया है। वे 92 साल के थे। 4 जुलाई को कोलकाता में उन्होंने अंतिम सांस ली। पिछले कुछ समय से मजूमदार उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे और कोलकाता के सरकारी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। उन्हें 'बालिका बधू' (1976), 'कुहेली' (1971), 'श्रीमान पृथ्वीराज' (1972) और 'दादर कीर्ति' (1980) जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता था।

14 जून को कराया गया था अस्पताल में भर्ती

रिपोर्ट्स के मुताबिक़, 14 जून को तरुण मजूमदार को मल्टीप्ल ऑर्गन मॉलफंक्शन एलिमेंट के चलते कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। रविवार को उनकी हालत एकदम बिगड़ गई थी, जिसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। हालांकि डॉक्टर्स के काफी प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। सोमवार सुबह तकरीबन 11.17 बजे उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

1931 में हुआ था तरुण मजूमदार का जन्म

तरुण मजूमदार का जन्म 8 जनवरी 1931 को बोगरा बंगाल प्रेसिडेंसी (अब पश्चिम बंगाल) में हुआ था। उनके पिता वीरेन्द्रनाथ मजूमदार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। कॉलेज टाइम केमिस्ट्री के स्टूडेंट रहे तरुण ने बंगाली फिल्मों की एक्ट्रेस संध्या रॉय से शादी की थी। 

बंगाली सिनेमा के लिए जाने जाते थे मजूमदार

मजूमदार को मूलरूप से बंगाली सिनेमा के लिए जाना जाता था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत में सचिन मुखर्जी और दिलीप मुखर्जी के साथ मिलकर फ़िल्में निर्देशित की थीं और इनके ग्रुप को यात्रिक नाम से जाना जाता था। 1965 में उन्होंने अकेले ही 'अलोर पिपासा' नाम की फिल्म का निर्देशन किया। इसके बाद कभी पलटकर नहीं देखा। 1965 में मौसमी चटर्जी को लेकर 'बालिका वधू' का निर्देशन किया, जो बांग्ला में रिलीज हुई और फिर इसी फिल्म को 1976 में सचिन और रजनी शर्मा के साथ हिंदी में बनाया, जिसे दर्शकों की खूब सराहना मिली। उनकी पिछली फिल्म 2018 में रिलीज हुई 'भालोबासर बारी' थी, जिसमें ऋतुपर्णा सेनगुप्ता और सिलाजीत मुखर्जी की मुख्य भूमिका थी। 

4 बार के नेशनल अवॉर्ड विजेता, पद्म श्री भी मिला

तरुण मजूमदार को 4 बार नेशनल फिल्म अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। उन्हें पहली बार 1963 में 'कंचार स्वर्गो' और दूसरी बार 1979 में 'निमंत्रण' के लिए बेस्ट फीचर फिल्म इन बंगाली का नेशनल अवॉर्ड मिला था। तीसरी बार 1979 में 'गणदेवता' के लिए बेस्ट पॉपुलर फिल्म प्रोविडिंग व्होलसम एंटरटेनमेंट और चौथी बार 1984 में 'अरण्य आमार' के लिए  बेस्ट साइंटिफिक फिल्म का नेशनल अवॉर्ड मिला था। 1990 में फिल्मों में अमूल्य योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

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