सार
महंगाई कम करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने का प्रयास करता है। इसके लिए रेपो रेट को बढ़ाया जाता है, ताकि इकोनॉमी में मनी फ्लो कम हो और डिमांड घट जाए। इससे महंगाई कम हो जाती है।
बिजनेस डेस्क : मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग में भारतीय रिजर्व बैंक ने गुरुवार को रेपो रेट (RBI Repo Rate) में बदलाव न करने का फैसला लिया है। इसे आम जनता के लिए राहत वाली खबर बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि इस फैसले से न लोन बढ़ेगा और ना ही EMI...लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट होता क्या है? RBI इसे क्यों बढ़ाता-घटाता रहता है? आखिर इसमें हमारा-आपका क्या फायदा है, क्यों इसे आम जनता के लिए राहत वाली बात बताई जाती है? जानें इन सभी सवालों के सिंपल जवाब...
आखिर रेपो रेट क्यों बढ़ाता-घटाता है RBI
दरअसल, भारतीय रिजर्व बैंक के पास महंगाई से लड़ने के लिए एक पावरफुल हथियार है, जिसे रेपो रेट कहते हैं। जब देश की महंगाई काफी ज्यादा हद तक बढ़ जाती है, तब RBI रेपो रेट बढ़ाने का फैसला लेकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की दिशा में पहल करता है। जब रेपो रेट ज्यादा होता है, जब आरबीआई बैंकों को महंगा कर्ज देता है। इसके बदले में बैंक भी अपने कस्टमर्स यानी हमें आपको महंगा लोन देता है। ऐसा होने पर इकोनॉमी में मनी का फ्लो कम हो जाता है और डिमांड में कमी आ जाती है, जिसका असर महंगाई पर पड़ता है और महंगाई कम हो जाती है।
रेपो रेट कम होने से जनता को क्या फायदा
जब इकोनॉमी का बुरा दौर चलता है, तब उसे रिकवर करने के लिए मनी फ्लो को बढ़ाने की जरूरत होती है। ऐसे में RBI रेपो रेट को कम कर देता है। इससे बैंकों को रिजर्व बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और वे अपने कस्टरमर्स को भी सस्ते ब्याज पर लोन देने लगते हैं।
रिवर्स रेपो रेट बढ़ना-घटना क्या होता है
जिस दर पर RBI बैंकों को पैसा रखने पर ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) कहते हैं। जब रिजर्व बैंक को मार्केट से लिक्विडिटी कम करना होता है, तब वो रिवर्स रेपो रेट को बढ़ा देता है। ऐसे में आरबीआई के पास अपनी होल्डिंग के लिए ब्याज लेकर बैंक इसका फायदा उठाते हैं। जब इकोनॉमी में हाई इंफ्लेशन का दौर आता है, जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है। इससे बैंकों के पास अपने कस्टमर्स को लोन देने फंड कम हो जाता है।
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