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बुखार की दवाई नहीं, रोगों की दुकान! अपने रिस्क पर ही खाएं DOLO-650

डोलो-650 सिर्फ बुखार की दवा नहीं, बल्कि भारत में अति प्रयोग और दुरुपयोग का प्रतीक बन गई है। जानिए कैसे यह लोकप्रिय गोली आपके लीवर को नुकसान पहुँचा सकती है और क्यों डॉक्टर इसके बेवजह इस्तेमाल को लेकर चेतावनी दे रहे हैं।

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Rajkumar Upadhyaya
Published : Apr 17 2025, 02:42 PM IST
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डोलो 650: हर घर में मशहूर ‘गोली’
Image Credit : Freepik

डोलो-650: हर घर में मशहूर ‘गोली’

भारत में यह टैबलेट इतनी मशहूर हो चुकी है कि जैसे घर में नमक और हल्दी हो, वैसे ही डोलो। सिर दर्द हो, बदन टूट रहा हो, या बस थोड़ा-सा बुखार—बस डोलो ले लो, लेकिन क्या यह ‘हर मर्ज की दवा’ वाकई इतनी अच्छी है?

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एक ट्वीट, और खुल गई पोल
Image Credit : Freepik

एक ट्वीट, और खुल गई पोल

अमेरिका में रहने वाले गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. पलानीअप्पन मनिकम के एक ट्विट ने "भारतीय डोलो-650" की पोल खोल दी। सोशल मीडिया पर हज़ारों लोगों ने कुबूल किया कि वो इसे बुखार नहीं, थकान और मूड ठीक करने तक के लिए लेते हैं।

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650mg की खुराक में ही छिपा है ये खतरा
Image Credit : our own

650mg की खुराक में ही छिपा है ये खतरा

आम पैरासिटामोल की डोज़ 500mg होती है, लेकिन डोलो में 650mg होती है। यह अधिक मात्रा दिखने में छोटा बदलाव लगता है, पर शरीर पर इसका असर कहीं ज़्यादा होता है, खासतौर पर लिवर पर।

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कोविड काल में बनी भारत की ‘स्नैक टैबलेट’
Image Credit : Social Media

कोविड काल में बनी भारत की ‘स्नैक टैबलेट’

जब पूरी दुनिया वैक्सीन और लक्षणों से जूझ रही थी, तब डोलो बन गई हर घर की पहली पसंद। इतना कि मीम्स बनने लगे—“भारत का फेवरेट स्नैक”। पर इन फनी मीम्स के पीछे डोलो 650 के खुराक की कड़वी सच्चाई बयां की जा रही थी।

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लक्षणों को छिपा कर बीमारी को देती है बढ़ावा
Image Credit : Social Media

लक्षणों को छिपा कर बीमारी को देती है बढ़ावा

पेनकिलर की सबसे बड़ी दिक्कत यही है—ये लक्षणों को छिपा देती हैं। बुखार, सिरदर्द या बदन दर्द जैसे संकेत बताते हैं कि बॉडी कुछ गड़बड़ है। लेकिन जब हम डोलो खा लेते हैं, असली कारण का इलाज टल जाता है।

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लिवर पर करती है सीधा वार
Image Credit : Social Media

लिवर पर करती है सीधा वार

रिपोर्ट्स के मुताबिक, बहुत ज़्यादा डोलो लेने से लिवर पर गंभीर असर हो सकता है। पैरासिटामोल का ओवरडोज़ दुनिया भर में लिवर फेलियर की एक बड़ी वजह है। जब लिवर बार-बार दवा को प्रोसेस करता है, तो वह थकने लगता है, जिससे सूजन, विषाक्तता और गंभीर स्थिति में फेलियर तक हो सकता है।

About the Author

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Rajkumar Upadhyaya
राजकुमार उपाध्याय ने प्रिंट मीडिया से करियर की शुरुआत की। दैनिक प्रभात होते हुए कई संस्थानों में भूमिकाएं बदलती रही। अब डिजिटल मीडिया के साथ सफर जारी है। इन्हें राजनीति, ब्यूरोक्रेसी और सोशल जस्टिस से जुड़े मुद्दों पर काम करना पसंद है। इन्हें 15+ साल का अनुभव है।
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