सार
Russia-Ukraine war से पहले ही खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगी थीं । विश्व के कई स्थानों पर सूखे ने वैश्विक उत्पादन को कम कर दिया है, वहीं मांग में तेजी से वृद्धि हुई है। यही वजह है कि विश्व खाद्य लागत (world food costs) रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गई है।
बिजनेस डेस्क। चीन के बाद भारत गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक है। साल 2022-23 वर्ष में विश्व बाजार में 12 मिलियन टन निर्यात करने की क्षमता रखता है, ब्लूमबर्ग सर्वे में जो व्यापारियों के पांच अनुमानों के औसत के मुताबिक रिकॉर्ड पर सबसे अधिक है। अमेरिकी कृषि विभाग (U.S. Department of Agriculture) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2021-22 में 8.5 मिलियन टन के शिपमेंट की तुलना में ये सर्वाधिक है।
ये भी पढ़ें- भारत की शान है Mukesh Ambani, कोरोना महामारी में दिया बड़ा योगदान, रिलायंस फाउंडेशन करती है लोगों की मदद
दुनिया के कई हिस्सों में रुकी सप्लाई
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से पहले ही कृषि वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगी थीं । विश्व के कई स्थानों पर सूखे ने वैश्विक उत्पादन को कम कर दिया है, वहीं मांग में तेजी से वृद्धि हुई है। यहा वजह है कि विश्व खाद्य लागत (world food costs) रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गई है। वहीं रूस- यूक्रेन युद्ध ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया है। वॉर की वजह से top producing regions से शिपमेंट को रोक दिया है, जिससे दुनिया में तकरीबन एक चौथाई से अधिक गेहूं की सप्लाई में कटौती करनी पड़ी है।यूक्रेन में युद्ध से पहले वैश्विक खाद्य कीमतें बढ़ीं थी, वहीं अब इसमें और तेजी देखने को मिली है।
ये भी पढ़ें- 31 मार्च तक ITR फाइल ना करने पर हो सकती है जेल की सजा, जानिए कितना लग सकता फाइन
वैश्विक कीमतों को कम रखने में की मदद
सिंगापुर स्थित एग्रोकॉर्प इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट और मैनेजिंग डॉयरेक्टर विजय अयंगर (Vijay Iyengar) ने कहा, "भारतीय गेहूं निर्यात से बाजार को तंग विश्व आपूर्ति की स्थिति में मदद मिलती है, जो सालाना लगभग 1.2 मिलियन टन अनाज का कारोबार करता है।" “यह वैश्विक कीमतों को कम रखने में मदद करता है। अगर भारत बड़ी मात्रा में गेहूं का निर्यात नहीं कर रहा होता, तो शायद कीमतें और बढ़ जातीं। शिकागो में बेंचमार्क गेहूं की कीमतें रूसी आक्रमण के बाद इस महीने 13.635 डॉलर प्रति बुशल के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गईं हैं।
आपूर्ति में कमी और प्रमुख निर्यातक देशों से अनाज की बढ़ती कीमतों ने भारतीय गेहूं को वर्षों में पहली बार प्रतिस्पर्धी बना दिया है। इसके साथ ही भारत के पास एक बड़ा निर्यात योग्य अनाज स्टॉक में है। यह उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में आयातकों के लिए महत्वपूर्ण होगा, जहां एक दशक से भी अधिक समय पहले बढ़ती खाद्य कीमतों ने हिंसक विद्रोह को जन्म दिया था।
ये भी पढ़ें- 3 महीने के हाई पर पहुंची बिटकॉइन की कीमत, जानिए क्रिप्टोकरेंसीज के फ्रेश प्राइस
अब अफ्रीकन देशों को भी होगा निर्यात
भारत ज्यादातर अपने पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश और कुछ मध्य पूर्वी बाजारों में गेहूं निर्यात करता है, लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में अब गेंहूं निर्यातकों को अब पूरे अफ्रीका और मध्य पूर्वी क्षेत्र के अन्य क्षेत्रों में खरीदार मिलने की संभावना है। तीन दशकों से अधिक समय से जिंसों का व्यापार करने वाले अयंगर ने कहा, "व्यावहारिक रूप से हर बाजार को अब भारतीय गेहूं पर विचार करने की जरूरत है, खासकर एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व के आसपास।" "हमने वैश्विक बाजार में भारतीय गेहूं के लिए इस तरह का उन्माद पहले नहीं देखा है।"
ये भी पढ़ें- यूक्रेन से युद्घ के बाद लगे प्रतिबंधों के बीच भारत का रूस से रुपए में क्रूड खरीदने का कोई विचार नहीं
इने देशों से चल रही चर्चा
वाणिज्य मंत्रालय ने इस महीने कहा कि भारत दुनिया के शीर्ष खरीदार मिस्र (Egypt) को गेहूं की शिपमेंट शुरू करने के लिए अंतिम बातचीत कर रहा है, जबकि चीन, तुर्की, बोस्निया, सूडान, नाइजीरिया और ईरान (China, Turkey, Bosnia, Sudan, Nigeria and Iran) जैसे देशों के साथ चर्चा चल रही है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी से एक साल पहले के 10 महीनों में भारत से गेहूं का निर्यात पहले ही चार गुना से अधिक बढ़कर लगभग 6 मिलियन टन हो गया था।
ये भी पढ़ें- भारत की उपलब्धियों का अमिट नाम हैं Ratan Tata, सपेरों का देश कहने वालों से खरीद ली उन्हीं की टॉप