सार
देश के प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में पिछले दिनों हुए हमले के बाद उत्पन्न अशांति के बीच उच्च शिक्षण संस्थान में जवाबदेही
नई दिल्ली: देश के प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में पिछले दिनों हुए हमले के बाद उत्पन्न अशांति के बीच उच्च शिक्षण संस्थान में जवाबदेही , शिक्षा और संस्थान की स्वायत्तता सहित अनेकों सवाल उठ रहे हैं । पेश है इस विषय पर जेएनयू के पूर्व कुलपति योगेन्द्र के अलघ से ‘ भाषा के पांच सवाल ’ पर उनके जवाब :
सवाल: जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की वर्तमान समस्या की जिम्मेदारी किसकी बनती है ?
जवाब: हमें यह समझना होगा कि महान विश्वविद्यालय स्वायत्तता और जवाबदेही के साथ बनते हैं। इसमें न केवल छात्रों , शिक्षकों और कर्मचारियों की , बल्कि प्रशासन , कुलपति और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ... सभी की जिम्मेदारी होती है । इसके साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकार प्राथमिकता के रूप में भविष्य की जरूरत के लिये फंड एवं व्यवस्था प्रदान करे। यदि वह ऐसा नहीं करती है , तो वह देश के भविष्य की उपेक्षा कर रही है।
सवाल: शिक्षा क्षेत्र, खासकर उच्च शिक्षा में सब्सिडी के बारे में आपकी क्या राय है , जिस पर कई बार सवाल भी उठाये जाते हैं ?
जवाब: अमीर माता - पिता के बच्चे कभी भी भारत या विदेशों में ऐसी शिक्षा पा सकते हैं जो वे प्राप्त करना चाहते हैं। लेकिन आपके पास एक ऐसा समाज हो जहां 50 प्रतिशत से अधिक लोग गरीब हों , अगर उन्हें शिक्षा का अवसर नहीं मिलता है तो हम बहुत सारी प्रतिभाओं को खो देंगे। विकास के एक बड़े स्रोत से देश वंचित रह जाएगा। शिक्षा उन वास्तविक दीर्घकालिक व्यवसायों में से एक है जो देश के भविष्य का आधार तैयार करते हैं । ऐसे में भविष्य के लिये शिक्षा क्षेत्र में सब्सिडी महत्वपूर्ण है।
इसमें यह देखना होगा कि कोई बालक या बालिका जो जन्म लेने वाली है , उसके लिये अभी से दस साल बाद के लिये एक माध्यमिक विद्यालय की योजना बनानी होगी । यह एक ऐसी चीज है जिसके लिये सार्वजनिक प्रयास की आवश्यकता है , एक अलग प्रबंधन शैली की आवश्यकता है , साथ ही स्वायत्तता और जवाबदेही की आवश्यकता है।
सवाल: आपने अपने एक लेख में बदलाव के बारे में युवाओं की उत्कंठा का जिक्र किया है , वर्तमान परिदृश्य में इसका क्या आशय है ?
जवाब: आज के युवा आदर्शवादी हैं। वह बदलाव चाहते हैं। यह अच्छा है कि वे ऐसा चाहते हैं , अन्यथा अगर बदलाव की तलाश नहीं हुई होती तो इतने युगांतकारी परिवर्तन नहीं देखने को मिलते । इस दृष्टि से महान विश्वविद्यालयों को बेहतर भविष्य का वाहक बनाना होगा और इसके लिये कई और जेएनयू जैसे संस्थाओं का निर्माण करना होगा। हमें यह समझना होगा कि महान विश्वविद्यालयों की क्या अहमियत होती है ।
सवाल: जेएनयू जैसे संस्थान देश की विकास यात्रा में कितना सार्थक योगदान कर सकते हैं ?
जवाब: जब हम भविष्य के लिए अर्थव्यवस्था का निर्माण कर रहे हैं तब हमें इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा कि हमने सीएसआईआर , आईआईटी और केंद्रीय विश्वविद्यालयों की एक पूरी प्रणाली का निर्माण किया , जो वास्तव में विकास के एक प्रमुख स्रोत रहे हैं । साफ्टवेयर और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र इसका उदाहरण है । ऐसे में इसकी सार्थकता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।
सवाल: जेएनयू जैसी उत्कृष्ट संस्थाओं में वंचित तबकों की पहुंच सुगम बनाने के लिये आपका क्या सुझाव है ?
जवाब: जब मैं जेएनयू में कुलपति था , तो हमने वंचित अंकों की प्रणाली (डिप्रिवेशन प्वायंट) शुरू की थी। मसलन यदि आप सबसे पिछड़े 100 जिलों में से किसी में पैदा हुए या यदि आपने अपनी स्कूली शिक्षा या डिप्लोमा वहां से किया है और यदि आपके माता - पिता गरीबी रेखा से नीचे के हैं , साथ ही आप एक लड़की हैं , तो आपको डिप्रिवेशन प्वायंट के आधार पर सर्वाधिक प्राथमिकता मिलेगी । हमने इसका उपयोग सब्सिडी के संदर्भ में और दाखिला प्रयोजनों के लिए भी किया। इसलिए , मुझे लगता है कि यह देखने के कई तरीके हैं कि एक प्रतिभाशाली व्यक्ति शिक्षा से वंचित नहीं रह जाए ।
(यह खबर समाचार एजेंसी भाषा की है, एशियानेट हिंदी टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)
(फाइल फोटो)