सार
एकनाथ शिंदे सतारा में पहाड़ी जवाली तालुका के मराठा समुदाय से आते हैं। 1980 के दशक वह शिवसेना का हिस्सा बने और किसान नगर के नामित शाखा प्रमुख बनाए गए। इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज महाराष्ट्र के बड़े नेताओं में शुमार हैं।
करियर डेस्क : महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति में हलचल मचाने वाले एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) गुट से कई विधायक लगातार जुड़ते जा रहे हैं। इधर, जैसे-जैसे उनका कुनबा बढ़ रहा है तो उधर, वैसे-वैसे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) कमजोर पड़ते जा रहे हैं। हर तरफ शिंदे की चर्चा है और पूरी पॉलिटिकल स्टोरी भी उन्हीं के इर्द-गिर्द घूम रही है। शिवसेना में बतौर पार्टी कार्यकर्ता सियासी पारी शुरू करने वाला शिंदे का कद आज कितना बड़ा हो गया है, उसका अंदाजा सूबे में सत्ता के हाई-वोल्टेज ड्रामे को देखकर लगाया जा सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतना बड़ा सियासी भूचाल लाने वाले एकनाथ शिंदे को कभी बेबसी के कारण अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। आइए बताते हैं आखिर कितने पढ़े-लिखें हैं शिंदे और उन्हें बीच में ही क्यों पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी।
बेहद गरीब परिवार में जन्म
एकनाथ शिंदे का जन्म 9 फरवरी 1964 को मुंबई (Mumbai) में हुआ था। उनकी फैमिली का माली हालत बहुत ठीक नहीं थी। बेहद गरीब परिवार से होने के चलते उन्हें बचपन में कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। शिंदे की शादी लता एकनाथ शिंदे से हुई है जो एक बिजनेस वुमेन हैं। उनका एक बेटा भी है, जिसका नाम श्रीकांत शिंदे है।
बेबसी में छोड़नी पड़ी थी पढ़ाई
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एकनाथ शिंदे की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई मंगला हाईस्कूल और जूनियर कॉलेज से हुई। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी तो जैसे-तैसे कर हाईस्कूल और 11वीं की पढ़ाई। फिर घर चलाने के लिए बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। परिवार चलाने के लिए उन्होंने मजदूरी शुरू की। 1980 के दशक का दौर था। शिंदे इधर-उधर के कामों से आजीविका चला रहे थे। इसी दौरान वे शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे और शिवसेना के ठाणे जिला प्रमुख आनंद दिघे के संपर्क में आए और यहां से उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई।
मंत्री बनने के बाद की आगे की पढ़ाई
एकनाथ शिंदे ने भले ही बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी थी लेकिन इसकी टीस उन्हें हमेशा ही रही। यही कारण है कि जब साल 2014 में महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार बनी तो उन्हें मंत्री बनाया गया। मंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू की और वाशवंतराव चव्हाण मुक्त विश्वविद्यालय, महाराष्ट्र से मराठी और राजनीति विषयों में बीए किया। यानी कि ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की।
ऑटो चालक से सत्ता के शिखर तक का सफर
एक वक्त ऐसा भी था जब शिंदे मजदूरी कर परिवरा चलाते थे फिर बाद में ठाणे शहर में ऑटो चलाने लगे। इसके बाद उनकी किस्मत ने पलटी मारी और वे सत्ता के शिखर पर पहुंच गए। शिंदे 58 साल के हैं और उनका पॉलिटिकल करियर ग्राफ काफी अच्छा है। अपने संगठनात्मक कौशल और जनता से मेल-मुलाकात वाली क्षमता के दम पर वह शिवसेना के शीर्ष नेताओं में गिने जाने लगे। जनता से जुड़ाव उनको काफी मजबूत बनाता है।
शिंदे का पॉलिटिकल करियर
- 1997 में ठाणे नगर निगम के लिए पहली बार पार्षद चुने गए
- 2001 में ठाणे नगर निगम में सदन के नेता चुने गए
- 2002 में दूसरी बार ठाणे नगर निगम के लिए चुने गए
- 2004 में महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुने गए
- 2005 में शिवसेना के पहले विधायक बने जिन्हें ठाणे का जिला प्रमुख बनाया गया
- 2009 में महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुने गए
- 2014 में एक बार फिर विधायक बने
- अक्टूबर 2014 से दिसंबर 2014 तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष
- 2014-19 तक PWD मंत्री , ठाणे जिले के संरक्षक मंत्री भी रहे
- 2018 में शिवसेना पार्टी के नेता नियुक्त
- 2019 में महाराष्ट्र लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री
- 2019 में लगातार चौथी बार विधायक बने
- 2019 में शिवसेना विधायक दल के नेता चुने गए
- 28 नवंबर 2019 में महाविकास-अघाड़ी सरकार में मंत्री बने
- 2019 में शहरी विकास और लोक निर्माण (सार्वजनिक उपक्रम) मंत्री नियुक्त
- 2019 में गृह मामलों के मंत्री (कार्यवाहक) नियुक्त
- 2020 ठाणे जिले के संरक्षक मंत्री नियुक्त
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