सार
सिविल सर्विस की परीक्षा में सफलता पाना आसान नहीं होता। इसके लिए कड़ी मेहनत के साथ ही दृढ़ इच्छा शक्ति की भी जरूरत होती है। साथ ही, कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखना होता है।
करियर डेस्क। सिविल सर्विस की परीक्षा में सफलता पाना आसान नहीं होता। इसके लिए कड़ी मेहनत के साथ ही दृढ़ इच्छा शक्ति की भी जरूरत होती है। साथ ही, कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखना होता है। ऐसे कैंडिडेट कम ही होते हैं, जिनमें ये सारी खासियत हो। कुछ पढ़ाई में तो तेज होते हैं, पर धैर्य के मामले में चूक जाते हैं। कुछ विपरीत परिस्थितियों में घबराहट के शिकार हो जाते हैं। आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने डेंगू जैसी गंभीर बीमारी होने के बावजूद धैर्य नहीं खोया और अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान भी पढ़ाई जारी रखी। उस शख्स की इस दृढ़ता और संकल्प शक्ति को देख कर डॉक्टर तक हैरान थे। नवजीवन विजय पवार नाम के इस युवक ने 2018 में पहले ही प्रयास में सिविल सर्विस की परीक्षा में बिना किसी कोचिंग के डेंगू होने के बावजूद 316वीं रैंक हासिल की।
दिल्ली में की तैयारी
नवजीवन महाराष्ट्र के रहने वाले हैं। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की। लेकिन उनका सपना था आईएएस अधिकारी बनना। इसके लिए उन्होंने दिल्ली में रह कर तैयारी करना ज्यादा बढ़िया समझा। वे दिल्ली आ गए और सिविल सर्विस की परीक्षा की तैयारी में जुट गए। उन्होंने कोई कोचिंग क्लास ज्वाइन नहीं किया और सेल्फ स्टडी पर ही जोर दिया।
एग्जाम के ठीक पहले हुआ डेंगू
नवजीवन की तैयारी ठीकठाक चल रही थी। प्रिलिम्स परीक्षा में वे सफल रहे थे, लेकिन मेन्स एग्जाम के ठीक एक महीना पहले ही उन्हें डेंगू हो गया। इसके बाद वे घर वापस लौट गए। उन्हें अस्पताल में दाखिल कराया गया और उनका इलाज शुरू हुआ। लेकिन अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान भी नवजीवन ने किताबों का साथ नहीं छोड़ा और परीक्षा की तैयारी में लगे रहे। हालत यह थी कि उनके एक हाथ में जब डॉक्टर इंजेक्शन लगा रहे थे तो दूसरे हाथ में किताब थी।
स्वस्थ होने के बाद लौटे दिल्ली
स्वस्थ हो जाने के बाद नवजीवन फिर दिल्ली आ गए और परीक्षा की तैयारियों में लग गए। डेंगू हो जाने से वे कमजोर हो गए थे और कुछ निराश भी महसूस कर रहे थे। लेकिन दोस्तों ने उनका साथ दिया और हिम्मत बंधाई। इसके बाद 2018 में उन्होंने परीक्षा दी और सफल रहे। उन्हें 316वीं रैंक मिली। नवजीवन की कहानी से समझा जा सकता है कि कोई चाह ले तो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सफलता हासिल कर सकता है।