सार

पंजाब की राजनीति की समझ रखने वाले इसे अकाली दल का नया पैंतरा बता रहे हैं। उनका कहना है कि क्योंकि सुखबीर बादल की अभी भी उतनी पकड़ पंजाब के मतदाता में नहीं है, जितनी की प्रकाश सिंह बादल की है। सीनियर बादल से पंजाब के मतदाता मन से और सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। 

बठिंडा। पंजाब में दो दिन बाद वोटिंग होने जा रही है। अकाली दल-बसपा गठबंधन इस बार विधानसभा चुनाव जीतता है तो क्या प्रकाश सिंह बादल फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे? चुनाव प्रचार में अभी तक सीनियर बादल सुखबीर सिंह बादल से पीछे ही रहे। लेकिन, चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले जिस तरह से प्रकाश सिंह बादल एक्टिव हुए और पार्टी ने उनके नाम पर वोट मांगने शुरू किए, इससे यह समझा जा रहा है कि एक बार फिर से प्रकाश सिंह बादल को सीएम फेस प्रोजेक्ट किया जा रहा है। 

हालांकि, पंजाब की राजनीति की समझ रखने वाले इसे अकाली दल का नया पैंतरा बता रहे हैं। उनका कहना है कि क्योंकि सुखबीर बादल की अभी भी उतनी पकड़ पंजाब के मतदाता में नहीं है, जितनी की प्रकाश सिंह बादल की है। सीनियर बादल से पंजाब के मतदाता मन से और सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। इसलिए चुनाव प्रचार से कुछ समय पहले ही अकाली दल ने प्रकाश सिंह बादल की उपलब्धियों पर फोकस कर दिया। इसमें कबड्डी कप आयोजित करने, फोरलेन सड़कों का निर्माण, स्मारकों का निर्माण, स्पोर्ट्स स्टेडियम, पावर सरप्लस, पुलिस में लड़कियों की भर्ती और बठिंडा हवाई अड्डे जैसी परियोजनाओं को प्रमुखता से गिनवाया गया है। 

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हमेशा संकटमोचक की भूमिका में रहते हैं प्रकाश सिंह बादल
हालांकि अकाली नेताओं का तर्क है कि ‘बादल सरकार' के आह्वान का मतलब यह है कि सुखबीर सिंह बादल भी बादल हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जब-जब अकाली दल संकट में आता है तो प्रकाश सिंह बादल हमेशा ही संकट मोचक की भूमिका में रहते हैं। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। 

लोगों के दिलों में जगह नहीं बना पाए सुखबीर सिंह बादल
अकाली दल के रणनीतिकारों की चिंता है कि चुनाव की कैंपेन पूरी तरह से सुखबीर बादल पर फोकस की। इस पर काफी खर्च किया, इसके बाद भी सुखबीर बादल लोगों के दिलों में वह जगह नहीं बना पाए जो प्रकाश सिंह बादल की है। अकाली दल का गढ़ माने जाने वाले मालवा में पार्टी की स्थिति बिगड़ती नजर आ रही है।

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अकाली दल चुनौतियों का सामना कर रहा है
एक वरिष्ठ अकाली नेता ने कहा कि यह चुनाव ना केवल अकाली दल का भविष्य तय करेगा बल्कि बादल परिवार खासकर सुखबीर बादल की राजनीतिक दिशा भी तय करेगा। उन्होंने कहा कि पंजाब में एक दशक तक सत्ता में रहने और पांच साल सत्ता में रहने के बाद अकाली दल गंभीर राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है।  

प्रचार से दूरी बनाए रहे प्रकाश सिंह बादल
विधानसभा चुनावों में एक बड़ी राजनीतिक परीक्षा का सामना कर रहा है। दरअसल, कई वरिष्ठ नेताओं द्वारा अकाली दल को बादल से अलग करने से पार्टी में एक बड़ा खालीपन पैदा हो गया है, जिसे तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं भरा जा सका है। इस बार चुनाव प्रचार के दौरान प्रकाश सिंह बादल लगातार बैकफुट पर रहे। 

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सुखबीर को सैट करने के लिए प्रकाश मैदान में उतरे
प्रचार की कमान पूर्व केंद्रीय मंत्री सांसद हरसिमरतकौर बादल ने संभाल रखी थी। जबकि पार्टी की ओर से प्रचार की कमान सुखबीर सिंह बादल के हाथों में रही। बिक्रम सिंह मजीठिया अकाली दल के दूसरे सीनियर नेता है, जो प्रचार की कामन संभाले हुए थे। वरिष्ठ बादल ने अपनी उम्र के कारण अपनी राजनीतिक गतिविधियों को सीमित कर दिया था और चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की थी। 

अकाली दल ने कहा- अगर जीते तो सुखबीर ही सीएम हाेंगे
सूत्रों ने बताया कि खराब स्वास्थ्य के बावजूद बड़े बादल को सुखबीर की राजनीति पारी जमाने के लिए सियासी मैदान में कूदना पड़ा। अकाली दल के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा ने इस तरह की बातों का खंडन करते हैं। उन्होंने कहा कि सुखबीर सिंह बादल गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री का चेहरा थे और जीत की स्थिति में वे पंजाब के सीएम होंगे। 

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