बात 60 के दशक की है, भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बॉलीवुड अभिनेता नाजिर हुसैन से भोजपुरी में एक फिल्म बनाने को कहा था। इस तरह 1963 में विश्वनाथ शाहाबादी की पहली भोजपुरी फिल्म 'गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो' रिलीज हुई। कहने को भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत भी हिंदी फिल्मों की तरह धार्मिक और सामाजिक कहानियों से हुई, लेकिन पिछले 2 दशक में गंगा की धारा ही उल्टी हो गई। अब तो भोजपुर सिनेमा और अश्लीलता जैसे एक-दूसरे के पूरक लगते हैं। फिल्में चलाने में उसके पोस्टर का बड़ा रोल होता है। पोस्टर यानी फिल्म की थीम को दर्शकों के सामने लाकर उन्हें टीवी या थियेटर तक खींचना। भोजपुरी में ऐसे-ऐसे बेहूदा-अश्लील और अजब-गजब टाइटल्स रजिस्टर्ड कराए जाने लगे हैं, जिन्हें पढ़कर ही लोग हैरान रह जाएं। फिल्मों की देखादेखी भोजपुरी लोकगीत-वीडियो सांग्स भी इसी दिशा में चल पड़े हैं। देखिए ऐसे ही कुछ पोस्टर...