सार
संतर सिंहानंद सरस्वती का ये बयान सच है। उन्होंने 2 दिसंबर को एक वीडियो के जरिए ये दावा किया था कि हैदराबाद बलात्कार मामले में सभी बलात्कार-आरोपी नाबालिग थे, इसलिए पुलिस द्वारा दिए गए नाम "काल्पनिक" हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि सभी आरोपी एक ही धर्म के हैं।
हैदराबाद. सोशल मीडिया पर एक बार फिर हैदराबाद गैंगरेप केस के आरोपियों के धर्म को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। 'द यूथ' नाम की एक वेबसाइट द्वारा प्रकाशित एक लेख सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। संत नरसिंहानंद सरस्वती के एक बयान का हवाला देते हुए कहा जा रहा है कि, हैदराबाद गैंगरेप में चारों बलात्कारी मुस्लिम थे। नाबालिग होने के कारण पुलिस ने उनके नाम बदल डाले थे। दावा किया जा रहा है कि पुलिस ने भी इस बात पर सहमति जताई। आइए इस वायरल खबर की सच्चाई का पता लगाते हैं।
वायरल पोस्ट में क्या है?
ट्विटर पर वायरल पोस्ट में लिखा है, “यति नरसिंहानंद सरस्वती ने कहा कि नाबालिग होने की वजह से पुलिस ने तीन बलात्कारियों का नाम बदलकर हिंदू कर दिया। लेकिन सच्चाई यह है कि हैदराबाद मर्डर के सभी अपराधी मुस्लिम थे। ” द यूथ पर इस आर्टिकल को 4 दिसंबर 2019 को प्रकाशित किया गया है।
क्यों वायरल हुई पोस्ट?
सोशल मीडिया पर यूजर्स ने इसी तरह के दावों के साथ आर्टिकल को शेयर करना शुरू कर दिया। ट्विटर यूजर जगदीश हिरमुट ने लेख पोस्ट करते हुए कहा, “क्या कोई इस कहानी की पुष्टि कर सकता है। अगर यह सच है तो हैदराबाद पुलिस और उनके राजनीतिक आका बड़े अपराधी हैं। गल्फ कन्नोइस्सुर की एडिटर-इन-चीफ मीना दास नारायण ने अपने ट्विटर हैंडल से इसकी सच्चाई जानने के लिए आर्टिकल को शेयर किया और ये वायरल हो गया। हैदराबाद की घटना के दूसरे दिन पहले आरोपी, आरिफ पाशा का नाम सामने आते ही लोगों ने इसे सांप्रदायिक रंग देना शुरू कर दिया था।
क्या है वायरल पोस्ट की सच्चाई
आपको बता दें कि संतर सिंहानंद सरस्वती का ये बयान सच है। उन्होंने 2 दिसंबर को इस वीडियो के जरिए ये दावा किया था कि हैदराबाद बलात्कार मामले में सभी बलात्कार-आरोपी नाबालिग थे, इसलिए पुलिस द्वारा दिए गए नाम "काल्पनिक" हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि सभी आरोपी एक ही धर्म के हैं। उनके हैंडल से ट्विटर पर शेयर किया गया जिसे अब तक 2,100 से अधिक बार रीट्वीट किया जा चुका है।
फैक्ट चेक
क्योंकि हैदाराबद केस इस समय सुर्खियों में है। इससे जुड़ी छोटी से छोटी अपडेट पर देश की नजर है तो हमने साप्रदायिक रंग देने वाली इस पोस्ट की जांच की। फैक्ट चेकिंग में हमने पाया कि, सभी आरोपी बालिग थे किसी की भी उम्र 20 साल से कम नहीं है।
इसलिए अपराधियों के नाबालिग होने का दावा पूरी तरह गलत और बेबुनियाद है। इसके अलावा पुलिस ने सभी आरोपियों के नाम, उम्र और उनके परिवारों की जानकारी साझा की है जिसमें सिर्फ एक आरोपी के मुस्लिम होने का पता चला है। ये चारों ही बचपन के दोस्त हैं।
निष्कर्ष क्या निकलता है?
साइबराबाद पुलिस ने भी वीडियो और पोस्ट का खंडन किया है। एक यूजर को जवाब देते हुए उन्होंने इसे फेक न्यूज बताया। अत: निष्कर्ष ये निकलता है कि वायरल पोस्ट में दी गई जानकारी भ्रामक है और साम्प्रदायिक माहौल खराब किए जाने के मकसद से इसे शेयर किया जा रहा है। लोगों को ऐसी फेक न्यूज को शेयर करना से बचना चाहिए।