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चाणक्य नीति: कहां हुई बारिश, किसे दिया दान और भोजन और दीपक जलाना कब व्यर्थ होता है?
उज्जैन. आचार्य चाणक्य भारत के महान विद्वानों में से एक थे। उन्होंने ने खंड-खंड में बंटे हुए भारत को एकसूत्र में पिरोया और एक साधारण से बालक चंद्रगुप्त मौर्य को उसका सम्राट बनाया। आचार्य चाणक्य ने कई ग्रंथों की भी रचना ही। उनमें से चाणक्य नीति भी एक है। इस ग्रंथ में लाइफ मैनेजमेंट के अनेक सूत्र छिपे हैं। आचार्य चाणक्य ने अपने एक सूत्र में बताया है कि बारिश, भोजन, दान और दीपक जलाना कब व्यर्थ होता है…
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समुद्र में वर्षा होना व्यर्थ है
आचार्य चाणक्य के अनुसार समुद्र तो अथाह पानी का भंडार है, वहां कितनी भी बारिश हो जाए, समुद्र को कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उससे किसी का भला नहीं होगा। बादलों से समुद्र में बरसा ऐसा पानी व्यर्थ ही होता है।
तृप्त व्यक्ति को भोजन कराना व्यर्थ है
अगर किसी व्यक्ति ने भरपेट भोजन किया हुआ है तो उसे दोबारा भोजन करवाना या भोजन करने का आग्रह करना व्यर्थ है। जिस व्यक्ति का पेट भरा है, उसके लिए छप्पन भोग भी किसी काम के नहीं। इसलिए आचार्य चाणक्य ने कहा है कि तृप्त व्यक्ति को भोजन करवाना बेकार है।
धनिक को दान देना व्यर्थ है
जिस व्यक्ति के पास पहले से ही धन है, उसे और अधिक दान देने से हमें कोई पुण्य फल नहीं मिलेगा। और न ही उस व्यक्ति को उस दान से कोई फर्क पड़ेगा। इसलिए आचार्य चाणक्य् ने कहा है कि धनिक को दान करना व्यर्थ है।
दिन में दीपक जलाना व्यर्थ है
अधंकार को दूर करने के लिए दीपक जलाया जाता है। दिन में सूर्य की पर्याप्त रोशनी होते हुए भी अगर कोई दीपक जलाता है तो इसे मूर्खता ही समझा जाएगा। इसलिए आचार्य चाणक्य ने कहा है कि दिन में दीपक जलाना व्यर्थ है।