होली एक रंग अनेक: जानिए भारत में किस जगह कैसे मनाते हैं रंगों का त्योहार?
उज्जैन. भारत में हर त्योहार से कई परंपराएं जुड़ी होती हैं। ये परंपराएं भी स्थान के साथ-साथ बदलती जाती हैं। ऐसा ही एक त्योहार है होली। वैसे तो पूरे देश में होली पर एक-दूसरे को रंग लगाने की परंपरा है, लेकिन कुछ स्थानों पर ये पर्व कुछ अलग तरीकों से मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 29 मार्च, सोमवार को है। जानिए भारत में कहां किस रूप में मनाई जाती है होली-
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प्रसिद्ध है बरसाना की लट्ठमार होली
बरसाना की लट्ठमार होली देश में ही नहीं विदेश में भी प्रसिद्ध है। ये होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंद गांव के लोग होली खेलने के लिए राधा के गांव बरसाने जाते हैं और बरसाना गांव के लोग नंद गांव में जाते हैं। इन पुरूषों को होरियारे कहा जाता है। जब नाचते, झूमते लोग गांव में पहुंचते हैं तो औरतें हाथ में ली हुई लाठियों से उन्हें पीटना शुरू कर देती हैं और पुरुष खुद को बचाते हैं, लेकिन खास बात यह है कि यह सब मारना, पीटना हंसी-खुशी के वातावरण में होता है।
बंगाल में निकालते हैं दोल जात्रा
बंगाल में होली का स्वरूप पूर्णतया धार्मिक होता है। होली के एक दिन पहले यहां दोल जात्रा निकाली जाती है। दोल जात्रा या दोल उत्सव बंगाल में होली से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं लाल किनारी वाली पारंपरिक सफेद साड़ी पहन कर शंख बजाते हुए राधा-कृष्ण की पूजा करती हैं और प्रभात-फेरी (सुबह निकलने वाला जुलूस) का आयोजन करती हैं। इसमें गाजे-बाजे के साथ, कीर्तन और गीत गाए जाते हैं।
गोवा में खाते हैं खास व्यंजन
गोवा के निवासी होली को कोंकणी में शिमगो या शिमगोत्सव कहते हैं। वे इस अवसर पर वसंत का स्वागत करने के लिए रंग खेलते हैं। इसके बाद भोजन में तीखी मुर्ग या मटन की करी खाते हैं, जिसे शगोटी कहा जाता है। मिठाई भी खाई जाती है।
ब्रज में प्राकृतिक रंगों से खेलते हैं होली
ब्रज में होली वसंत पंचमी से चैत्र कृष्ण पंचमी तक मनाई जाती है। ब्रज की होली देशभर में प्रसिद्ध है। ब्रज में खेली जाने वाली होली में भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य होली की झलक हमें मिलती है। यही कारण है कि इसे देखने के लिए हर साल हजारों लोग ब्रज मंडल में इकट्ठा होते हैं। ब्रज की होली में प्रेम और भक्ति के रंग चारों तरफ बिखरे दिखाई देते हैं। ब्रज में खेली जाने वाली होली में प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है।
उत्तराखंड में सजती हैं महफिलें
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की सरोवर नगरी नैनीताल और अल्मोड़ा जिले में होली के अवसर पर गीत बैठकी का आयोजन किया जाता है। इसमें होली के गीत गाए जाते हैं। यहां होली से काफी पहले ही मस्ती और रंग छाने लगता है। इस रंग में सिर्फ अबीर-गुलाल का टीका ही नहीं होता बल्कि बैठकी होली और खड़ी होली गायन की शास्त्रीय परंपरा भी शामिल होती है।
छत्तीसगढ़ में कहते हैं होरी
छत्तीसगढ़ में होली को होरी के नाम से जाना जाता है। गांव के चौक-चौपाल में फाग के गीत होली के दिन सुबह से देर शाम तक निरंतर चलते हैं। रंग भरी पिचकारियों से बरसते रंगों एवं उड़ते गुलाल में मदमस्त छत्तीसगढ़ के लोग अपने फागुन महाराज को अगले वर्ष फिर से आने की न्यौता देते हैं।
यहां किया जाता है शक्ति प्रदर्शन
सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनन्दपुर साहिब में होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते हैं। ये उत्सव 6 दिन तक चलता है। इस अवसर पर, भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं।