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Ganesh Utsav 2022: ऐसा है श्रीगणेश का परिवार, 2 पत्नियों के साथ 2 पुत्र और 1 पुत्री भी हैं शामिल
Ganesh Utsav 2022: इस बार गणेश उत्सव की शुरूआत 31 अगस्त से हो चुकी है, जो 9 सितंबर तक रहेगा। इन 10 दिनों में भगवान श्रीगणेश के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाएगी तथा विभिन्न उपायों से उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास भी किया जाएगा।
| Published : Sep 02 2022, 12:03 PM IST
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गणपति के पिता स्वयं भगवान शिव हैं। इनकी पूजा अनादि काल से की जा रही है। मान्यताओं के अनुसार ये त्रिदेवों में प्रमुख हैं और इन्हीं की इच्छा से सृष्टि का निर्माण हुआ है। शिव प्राण देते हैं, जीवन देते हैं और संहार भी करते हैं। शिव का पूजन समस्त सुख देने वाला माना गया है।
धर्मग्रंथों के अनुसार देवी पार्वती पर्वतराज हिमालय व मैना की पुत्री हैं। ये ही शिवजी की पत्नी और श्रीगणेश की माता भी हैं। दुष्टों का सर्वनाश करने के लिए इन्होंने भी कई अवतार लिए हैं। हर काम में सफलता की शक्ति पार्वती प्रदान करती हैं। भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर स्वरूप में स्वयं शक्ति के महत्व को प्रतिपादित किया है।
भगवान गणेश के एक बड़े भाई भी हैं, इनका नाम कार्तिकेय है। ये देवताओं के सेनापति हैं। वे साहस के अवतार हैं। जब तारकासुर ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था, उस समय कार्तिकेय ने ही उसका वध किया था। शिवपुराण के अनुसार कार्तिकेय ब्रह्मचारी हैं, वहीं ब्रह्मवैवर्त पुराण में इनकी पत्नी का नाम देवसेना बताया गया है।
शिवपुराण के अनुसार, भगवान गणेश की दो पत्नियां हैं सिद्धि और बुद्धि। ये प्रजापति विश्वरूप की पुत्रियां हैं। कुछ स्थानों पर रिद्धि और सिद्धि का नाम मिलता है, लेकिन अधिकांश ग्रंथों नें सिद्धि और बुद्धि को ही गणपति की पत्नी माना गया है। सिद्धि सभी कामों में सफलता प्रदान करती हैं, वहीं बुद्धि हमें सही रास्ता दिखाती हैं।
धर्म ग्रंथों में भगवान गणेश के दो पुत्र भी बताए गए हैं। इनके नाम हैं क्षेम और लाभ। क्षेम हमारे धन और ज्ञान सुरक्षित रखते हैं यानी उसे कम नहीं होने देते और लाभ का काम निरंतर उसमें वृद्धि देने का है। लाभ हमें धन, यश आदि में निरंतर बढ़ोत्तरी देते हैं।
भगवान श्रीगणेश की पुत्री का नाम संतोषी बताया जाता है हालांकि धर्म ग्रंथों में इनका वर्णन नहीं मिलता। इनसे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं जरूर प्रचलित हैं। प्रत्येक शुक्रवार को संतोषी माता को प्रसन्न करने के लिए महिलाएं विशेष व्रत व पूजा भी करती हैं। इन्हें संतोष यानी संतुष्टी की देवी कहा जाता है।